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________________ सुचित्रक कुंजर सागरपार, सुदुर्जन सेचन शत्रु संहार । सुकम्पित किन्नर भूत रसाल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥५॥ सुऋद्धि समृद्धि सुदायक सूर, सुपुत्र सुमित्र कलत्र कपूर । सुरंजित वासुर कांति विशाल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥६॥ सुकन्दुर कुण्डल हार सुवाद्य, सुशेखर सुस्वर किंकिनि नाद । भयंकर भीषण भासुर काल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥७॥ सुकामिन खेलत दिव्य शरीर, सुवाहन हासन मोदन धीर । सुभाषत राजत विश्व विशाल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥८॥ सुथापित निर्मल जैन सुवाक्य, न कंपित दुर्भिक्ष दुस्तर साक्य । प्रकाशित जैन सुधर्म रसाल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥९॥ सुभाषित क्षेत्र सुभव्य सुवंश, महोदय जैन सरोवर हंस । महाशुभ सागर केलि विशाल, सदा शुभ हो जय क्षेत्रसुपाल ॥१०॥ मालिनी असम सुख सुसारं तीक्ष्ण दँष्ट्रा करालं । रचकर करज ढीलं दीर्घ जिह्वा करालं ॥ सुघट विक्रत चक्रं शान्ति दास प्रशस्तं । भजतु नमतु जैनं भैरव क्षेत्रपालं ॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यो, अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004960
Book TitleMaro Swadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaratnavijay
PublisherShraman Seva Parivar
Publication Year
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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