________________
अर्क तर्क वर्जनैरनर्घ चन्द्रनन्दनैः, कुंकुमादि मिश्रितैः रणद मिष्ट पदाश्रितैः । भूत प्रेत राक्षसादि दुष्ट कष्ट नाशनं, शान्ति सिद्धि ऋद्धि वृद्धि क्षेत्रपाल चर्चनं ॥२॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः चन्दनं समर्पयामि स्वाहा ॥ औषधीश सिंधुफेन हारभास मुज्ज्वलैः, अक्षतैः सुलक्षणैः जाति खंड वर्जितैः । भूत प्रेत राक्षसादि दुष्ट कष्ट नाशनं, शान्ति सिद्धि ऋद्धि वृद्धि क्षेत्रपाल चर्चनं ॥३॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः अक्षतं समर्पयामि स्वाहा ॥ पारिजात वारिजात कुन्द हेम केतकी, मालती सुचंपकादि सार पुष्प मालया ॥ भूत प्रेत राक्षसादि दुष्ट कष्ट नाशनं, शान्ति सिद्धि ऋद्धि वृद्धि क्षेत्रपाल चर्चनं ॥४॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः पुष्पं समर्पयामि स्वाहा ॥ व्यंजनेन पायसादिभिः समं लसद्रसैः, मोदकोदनादि स्वर्ण भाजनं सुसंस्थितैः । भूत प्रेत राक्षसादि दुष्ट कष्ट नाशनं,
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org