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तिल पिंडस्तु पिंडेन, माषस्य बकुलादिभिः । ददामि क्षेत्रपालाय, विश्वविघ्नविनाशिने ॥५॥ . ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः तिलं समर्पयामि स्वाहा ॥ भो क्षेत्रपाल ! जिनपः प्रतिमांकभाल ! दंष्ट्रांकराल ! जिनशासन रक्षपाल ! तैलादि जन्मगुड़ चन्दन पुष्प धूपैः । भोगं प्रतीच्छ जगदीश्वर यज्ञ काले ॥६॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ॥
अथाष्टक क्षीर हरि गौर नरिपुर वारि धारया, मंद बूंद चन्दनादि सौरभेन सारया । भूत प्रेत राक्षसादि दुष्ट कष्ट नाशनं, शान्ति सिद्धि ऋद्धि वृद्धि क्षेत्रपाल चर्चनं ॥१॥ ॐ आँ क्रॉ ही अत्रस्थ विजयभद्र, वीरभद्र, मणिभद्र, भैरव, अपराजित पंच क्षेत्रपालेभ्यः जलं समर्पयामि स्वाहा ॥
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