SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०. से साक्षात् एक लाखबार करता है एवं चन्द्रमंडल से बाहर आती हुई समस्त विश्व में चांदनी के समान चमकती हुई तुम्हें जो मन से देखता है वह मनुष्य दशांश (दस हजार) - पूर्वक अग्निकुंडमें घी से होम करता है वह प्रखर पण्डित होता है। हे बालक ! नम्र मुखकमलवाला होकर तूं लक्षण, काव्य, नाटक, कथा एवं चम्पू के अभ्यास में क्यों व्यर्थ प्रयास करता है ? इस मंत्रराजयुक्त दिव्यकान्तिवाली सरस्वती का तूं प्रतिदिन आराधन कर जिससे तूं काव्यरचनाकौशल में सूर्यसमान प्रतापी होकर असामान्य पण्डित हो जायेगा। ११. चलायमान चन्द्र के समान मुखवाली; प्रसिद्ध प्रभावयुक्त; स्वातंत्र्यरूप राज्य प्रदान करनेवाली; देवों और दानवों के स्वामियों के समूह द्वारा भक्तिभाव से अनायास जिसकी स्तुति की जाती है ऐसी; प्रशस्त संपत्तियुक्त; चन्दनलेप से अंगो की मनोहर प्रभावाली एवं (स्वर्ग, भूमि एवं पाताल -) त्रिभुवन को संजीवन प्रदान करनेवाली ऐसी सुप्रसिद्ध वह भगवती सरस्वती मेरी रक्षा करे।१२. त्यन्तं प्रोद्गीयमाने मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ ॥३॥ क्षा क्षीं दूं क्षः स्वरूपे हन विषमविषं स्थावरं जंगमं वा, संसारे संसृतानां तव चरणयुगे सर्वकालं नराणाम् । अव्यक्ते व्यक्तरूपे प्रणतनरवरे ब्रह्मरूपे स्वरूपे, ऐं ऐं ब्लूँ योगिगम्ये मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ ॥४॥ सम्पूर्णाऽत्यन्तशोभै शशधरधवलै रासलावण्यभूतैः, रम्यैः स्वच्छःश कांतैः निजकरनिकरैश्चंद्रिकाकारभासैः । अस्माकीनं भवाब्जं दिनमनुसततं कल्मषं क्षालयन्ती, श्री श्रीं धैं मंत्ररूपे मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ ॥५॥ भाषे पद्मासनस्थे जिनमुखनिरते पद्महस्ते प्रशस्ते, प्रां प्री पूँ प्र: पवित्रे हर हर दुरितं दुष्टजं दुष्टचेष्टं । वाचां लाभाय भक्त्या त्रिदिवयुवतिभिः प्रत्यहं पूज्यपादे, चंडे चंडीकराले मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ ॥६॥ नम्रीभूतक्षितीश-प्रवरमणिमुकुटोघृष्टपादारविदे, पद्मास्ये पद्मनेत्रे गजगतिगमने हंसयाने विमाने। कीर्तिश्रीबुद्वि -चक्रे जयविजयजये गौरीगं धारीयुक्त, ध्येयाध्येयस्वरूपे मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ विद्युज्ज्वालाप्रदीप्तां प्रवरमणिमयीमक्षमालं सुरूपां, रम्यावृत्तिर्धरित्री दिनमनुसततं मंत्रकं शारदं च । नागेन्द्ररिन्द्रचन्द्रैर्मनुजमुनिजनैः संस्तुता या च देवी, कल्याणं सा च दिव्यं दिशतु मम सदा निर्मलं ज्ञानरत्नम् ॥८॥ करबदरसदृशमखिलभुवतलं यत् प्रसादतः कवयः । पश्यंति सूक्ष्ममतयः सा जयति सरस्वती देवी, इति श्रीमहामंत्रगर्भितं सरस्वतीदेवीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।। जो भव्य प्राणी प्रफुल्लित चित्त से इस अनेक गुणों से युक्त स्तोत्र का प्रात:काल में पाठ करता है, वह मधुर वचनरूपी अमृत के द्वारा राजाओं के समूहों को भी अत्यन्त सहजता से प्रसन्न करता है। ॥७॥ १३. । समाप्तम्। अज्ञातकर्तृक- महामंत्रगर्मित श्रीसरस्वतीस्तोत्रम् । ॥१॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मंत्ररुपे विबुधजननुते देवदेवेन्द्रवंद्ये, चंचच्चंद्रावदाते क्षिपितकलिमले हारनीहारगौरे। भीमे भीमाट्टहास्ये भवभयहरणे भैरवे भीमवीरे, हाँ ह्रीं हुंकारनादे मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ हा पक्षे बीजगर्भे सुरवररमणी-चर्चितानेकरूपे, कोपं वं झं विधेयं धरित धरिवरे योगनियोगमार्गे। हं सं स: स्वर्गराजप्रतिदिननमिते प्रस्तुतालापपाठे, दैत्येन्द्रायमाने मम मनसि सदा शारदे देवि तिष्ठ दैत्यैर्दैत्यारिनाथै मितपदयुगे भक्तिपूर्व स्त्रिसन्ध्यम्, यक्षैर्सिदैश्चनप्रेरहमहमिकया देहकान्त्याऽतिकान्तैः । आँ इँ ॐ विस्फुटाभाक्षरवरमृदुना सुस्वरेणासुरेणा मूलमन्त्रः ॐ नमो ह्रीं वद वद वाग्वादिनी परममहादेवी मम वक्त्र स्थिरवासं कुरु कुरु जडतामपहर जडतामपहर श्रीश्रीशारदादेवी अखिलवाक्प्रकाशिनी ही अहँ . हूँ ही ही शारदादेवी कल्लोलमहावाक्प्रकाशिनी अस्मन्मुखे वासं कुरु कुरु क्ली अहँ भाँ पूँ ॐ वाग्देवी जयं ह्रीं क्षाँ क्षी अहँ ह्रीं भारतीदेवी मम मुखे वासं कुरु कुरु जू जाँ वाग्देवी जयं महादेवी वजे विद्याप्रकाशिनि ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ ॐ ह्रां ह्रीं हैं ह्रः ॐक्षी क्षों ... क्राँ मैं भ्र: ॐ ह्रीं वं वं धूं हः ॐ भारती सरस्वती मम वक्त्रे वासं कुरु कुरु स्वाहा॥हरे गाथाने संत २१वारी प्रसन्नथाय. ॥२॥ टी, ४. त्यंतं प्रोडीयमाने । ५. संसारे संसृतानां । ६. ऐं क्ली ब्लू । ७. अस्माकीनं भवाज्यं । ८. भास्वत् पद्मासनस्थे । ९. वाचालाभि: स्वशक्त्या, । १०. वृद्धि। टी. १. भीमे भीमादृ हासे. । २. हाँ ह्री होकार । ३. है सं स: स्वर्ग जैश्व. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004932
Book TitleSachitra Saraswati Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay
PublisherSuparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
Publication Year1999
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy