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________________ अनुवाद सिरिपउमसूरि-विरइया सिरि-सरस्सईविंसिया।। आर्यावृत्तम् ॥५॥ शरद पूर्णिमाके चांद समान, संपूर्ण वदनवाली (हे वागीश्वरी) तुझे नमस्कार हो । श्रेष्ठ-निर्मल-कमलके पत्र सदृश, दीर्घ लोचनवाली तुझे नमस्कार हो। मोती का हार, सरोवरमे स्थित हंस, कुंद नामके (उज्ज्वल) पुष्प एवं चांद समान श्वेत वर्णवाली ! तुझे नमस्कार हो । सभी भाषाओंके विषयमें वाणी स्वरूपसे फैली हुई! तुझे नमस्कार हो। श्याम-ठोस(घनें) घुघराले - कोमल और स्निग्ध केशवाली! तुझे नमस्कार हो । पवित्र मोरकी शिखावाले मुकुटमणिसे युक्त मस्तकवाली तुझे नमस्कार हो। तप्त किये हुऐ सोने में अंकित मणिके कुंडलो से शोभायमान तुझे नमस्कार हो । उत्तम करधनीसे विभूषित कटि(कमर) प्रदेशवाली ! तुझे नमस्कार हो। श्रेष्ठ - शुद्ध मोतीके हार से शोभा प्राप्त हृदय वाली तुझे नमस्कार हो । भक्तजनों द्वारा नमस्कृता, लोगोके पापोको दूर करने में चतुरा तुझे नमस्कार हो । मनोहर दो बाजुबंध ग्रहणकरने में अत्यंत उत्कृष्ट ऐसी, तुझे नमस्कार हो । रत्नो और सुवर्णसे अलंकृत किये हुए सुंदर कंठवाली तुझे नमस्कार हो। अत्यंत उज्ज्वल लता(पुष्प) है हाथमें जिसके ऐसी हे देवी। तुझे नमस्कार हो। कमल - मत्स्य - वज्र आदि सुलक्षणोंसे प्रशस्त ऐसी तुझे नमस्कार हो । दुष्ट दैत्यों और शत्रुओंके नाशकरने में दक्ष ऐसी तुझे नमस्कार हो । हे दीर्घ लोचनवाली देवी ! तुझे नमस्कार हो, मुझे आप सुख प्रदान करें। आभूषण विशेषसे सरल अंगुलियाँमें रक्त है मध्यभाग जिसका ऐसी तुझे नमस्कार हो। दिव्य ज्ञानियोसें ज्ञात हुआ है रहस्य जिसका ऐसी तुझे नमस्कार हो । शास्त्रकी अत्यंत उत्तम पुस्तकें स्थापन है करमें जिसने ऐसी तुझे नमस्कार हो। स्वर्गपथकी अर्गला को तोडनेमें हथियार सदृश तुझे नमस्कार हो। जिनेश्वरभगवंतके मुखकमलमें निष्पन्न हुई, हे सरस्वती ! नमन किये हुए सकलजनके चित्तके लिये चिंतामणी सदृश हे श्री ब्राह्मीपुत्री! हे गौरी ! हे जोगेश्वरी ! हे वागेश्वरी ! तू मुझे वरदान देने वाली हो। सिरि-केसरियाणाहं, थुणिअ गुरुं पुजणेमिसूरिवरं । सज्झाय-मोय-दक्खं, पणेमि सिरि-सारया थुत्तं ॥॥ जिणवइ-वयणणिवासा, दरियविणासा-तिलोयकयथवणा। सुगुण-रयणमंजूसा देउ मई सारया विउलं ॥२॥ सिरि गोयमपयभत्ता पवयणभत्तंगि भव्वणिवहस्स। विग्धुड्डा वणसीला देउ मई सारया विउलं ॥३॥ मुक्कज्झयणुस्साहा हया सया देवि! तं विहाणेणं। सरिऊण पीइभावा, कुणंति पढणं महुरसाहा ||४|| दिव्वाहरणविहूसा-पसण्णवयणा विसुद्धसम्मत्ता। सुयसंघ-पसंति पयरी देउ मई सारया ! विसयं जीए झाणं विमलं थिर-चित्तेणं कुणंति सूरिवरा। पत्थाणसरणकाले वरया सा सारया होउ ॥६॥ सिरिमायाबीयक्खर-मयरुविस्सरिय दाणसुहलक्खे। जगमाइ ! धण्णमणुया सइ-प्पहाए सरंति मुया ॥७॥ वय वय मह हियजणणि ! मियक्खरेहिं मए किवं किच्चा। सक्केमि कव्वरयणं काउंजेणप्पकालंमि ॥८॥ कुण साहजमणुदिणं सुयसायरपारपत्तिकजंमि। ण विणा दिणयरकिरणे कमलवियासो कया हुज्जा ॥९॥ तुज्झ णमो तुज्झ णमो तुम प्पसाएण चउविहो संघो। सुयणा णजणसीलो परबोहण-पच्चलो होइ ॥१०॥ णेगेऽवि गंथयारा, गंथाईए णवेअ तुह चरणे। साहंति सज्ज सिद्धी आगग्गले ते प्पहावोऽत्त ॥११॥ गीयरइ-तियस-वइणो वंतर-सामिस्स पट्टराणीए। देवी सरस्सईए, विइयाउ अणेगणामाई ॥१२॥ सुयदेवि पह समया, हिट्ठाइगमेव भारई भासं । णिच्चं सरस्सइं तह, थुणंतु मुह सारयं वाणी ||१३|| भत्तीइ पयाण तुहं, हंसोऽवि जए सुओ विवेइत्ति । तेसिं किं पुण जेहिं, तुम चरणा सुमरिआ हियाए ॥१४॥ वामेयर-पाणीहि, धरई वरपोम्मपुत्थियं समयं । इयरेहिं तह वीण,-क्खमालियं सेयवासहरिं ||१५|| वयई णियमुहकमला, पुण्णक्खर-मालियं पणवपूयं । संसुद्ध-बंभवइया, किरियाफलजोग-वंचणया ॥१६॥ संपूर्णम् + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004932
Book TitleSachitra Saraswati Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay
PublisherSuparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
Publication Year1999
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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