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श्री शारदादेवी शास्त्र सुबुद्धि की दात्री है, मनोरमा है, सर्वजन की माता है । समस्त मूर्खता के भय से रक्षा करनेवाली वह पटुतामयी विधाता मेरे श्रेय के लिए हो !
१.
२७ अनुवाद
हिम के समान उज्ज्वल हार से शुद्ध जो तीन-सकल विश्व लोक में प्रसिद्ध है, राजा, देवों सुरेन्द्रों के लिए सेव्य (सेवा योग्य) है, वह विद्या विशुद्ध एवं सदा अति भव्या है।
२.
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संसाररूपी भयानक समुद्र से पार उतारनेवाली वह भव्य जीवों की सब प्रकार की आशाओं को पूर्ण करनेवाली है । गुणों के समूहवाली, सब प्रकार के बन्धनों का जो छेदन कर चुकी है, उसको पृथ्वी पर जिन्होंने बन्दन नहीं किया वे हताश है। ३.
कल्याणमाला देने में अति कुशल, संमोहन प्राप्त करानेवाली, इच्छित कल्पवृक्ष की लता तुल्य दुर्बुद्धि रूपी हिरन का नाश करने हेतु भाले के समान वह हंमेशा भक्त को शिक्षा देती है ।
४.
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आनन्दरूपी वृक्ष के लिए जलधारा के समान, विज्ञानसद्ध्यान धरनेवाली, अति सारभूत, मातंग वेताल-पिशाच सिंह को नाश करनेवाली, देदीप्यमान हंस के वाहनवाली है। ५. शुद्ध कपूर तथा श्रेष्ठ चंदनों से पूजित, प्रभाव हीनता आदि दोषों से रहित, हस्त में स्थापित पुस्तक तथा मालासे युक्त, कमल को धारण करनेवाली उत्तम अमृत से युक्त है।
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तेज- सौभाग्य- लावण्य गुणों से सुशोभित, अपने स्वरुप मात्र से ही देवियों के समूह का तर्जन करनेवाली वह अनेक सज्जनवर्ग से आकर्षित हुई। स्वर्ग पाताल एवं पृथ्वी लोक में उसने गर्जना की
है।
७.
इस लोक में जो उत्तम पुरुष प्रातः काल श्री शारदा देवी का स्तवन पढ़ते हैं उन के घर में निर्मल काव्यशक्ति, सुख और उत्तमकीर्ति (साधुकीर्ति) उत्पन्न होती है।
6.
| सम्पूर्णम् ।
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२८
श्री सरस्वती स्तोत्रम्
चन्द्रार्कको टिघटितोज्ज्वलदिव्यमूर्ते, श्रीचन्द्रिका कलितनिर्मलशुभवस्त्रे । कामार्थदायिकलहंससमाधिरूढे, वागीश्वर प्रतिदिनं मम रक्ष देवि !
देवासुरेन्द्रनतमौलिमणिप्ररोचिः, श्रीमञ्जरी निबिडरञ्जितपादयुग्मे । नीलालके प्रमदहस्तिसमानरूपे, वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! केयूरहारमणिकुण्डलमुद्रिकाद्यैः, सर्वांगभूषणमुनीन्द्रनरेन्द्रवन्द्ये ! नानासु रत्नवरनिर्मलमौलियुक्ते, वागीश्वर प्रतिदिनं मम रक्ष देवि !
कंकेल्लिपल्लवविनिन्दितपादयुग्मे, पद्मासने दिवसपदासमानवस्त्रे । जैनेन्द्रवक्त्रभवदिव्यसमस्तभाषे, वागीश्वर प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! मंजीरकोत्कनककेकणकिंकणीनां कांच्याश्च झंकृतरवेण विराजमाने । सद्धर्मवारिनिधिसन्ततवर्द्धमाने, वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ! अर्धेन्दुमंडित जटाललितस्वरूपे, शास्त्रप्रकाशिनि समस्तकलाधिनाथे ! चिन्मुद्रिका - जपसराऽभय-पुस्तकांके, वागीश्वरि ! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि डिण्डीरपिण्डहिमशंखसितांशु हारे, पूर्णेन्दुबिम्बरुचिशोभित-दिव्यवाचे। चाञ्चल्यमानमृगशावललाटनेत्रे, वागीश्वर प्रतिदिनं मम रक्ष देवि !
पूज्ये पवित्रकरणोन्नतकामरूपे, नित्यं फणीन्द्रगरुडाधिपकिन्नरेन्द्रैः । विद्याधरेन्द्रसुरपक्षसमस्तवृन्दैः, वागीश्वरि । प्रतिदिनं मम रक्ष देवि !
। सम्पूर्णम् ।
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