SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - १ सर्वमप्यनुष्ठानं श्रीदेवगुरुवंदनबहुमानादिभक्तिपूर्वकं सफलं भवतीति आह च ॥ विणयाहीआविज्झा, दिति फलं इह परेअलोगंमि ॥ न फलंति विणयहीणा, सस्साणिवतो अहीणाणि ॥९॥ भत्तीइ जिणघराणं, खिज्झंति पुव्वसंचिआ कम्मा । आयरिय नमुक्कारेण विज्झा मंताय सिझंति ॥ १० ॥ इति हेतोद्वार्दशभिरधिकारैश्चैत्यवंदनाभाष्ये ॥ पढमहिगारे वंदे, भावजिणे बीयएउदव्व जिणे ॥२॥ इगचेइअ ठवणजिणे तइअ चउत्थंमि नामजिणे || ४ || १ तिहुअणठवणजिणे पुण पंचमए विहरमाणजिणछट्टे ॥६॥ सत्तमए सुअनाणं, अट्टमए सव्वसिद्ध थुइ ॥२॥ तित्थाहिव वीर थुई नवमे ९ दशमे अ उज्जायंत थुइ १० अट्ठावयाइइगदसि ११ सुदिट्ठि सुरसमरणाचरिमे १२ ॥ ३॥ नमु १ जेअइ २ अरिहं ३ लोग ४ सव्व ५ पुक्ख ६ तम ७ सिद्ध ८ जोदेवा ९ ॥ उज्जि १० चत्ता ११ वेया, वच्चग १२ अहिगार पढमपया ॥ ४ ॥ इति गाथोक्तैर्देववंदनं विधाय चतुरादिक्षमाश्रमणैः श्रीगुरुन् वंदते ॥ अह सुअ समिद्धिहेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं ॥ चिंतेइ नमुक्कारं, सुण व देइ व तीइ थुई ॥ ५२ ॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई ॥ पढिउं च पंचमंगल, मुवविसइ पमज्जसंडासं ॥५३॥ अर्थ :- आवश्यकके आरंभमें वारां अधिकार पर्यंत चैत्यवंदना करनी अर्थात् चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, तथा यही ग्रंथमें श्रुतदेवता और क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग और तिनकी दो थुइ कहनी ऐसा कथन उपर के पाठमैं है I तथा संवत् १९४३ के फाल्गुन चातुमामेमें श्रीरत्नविजयजी, राधनपुर नगरमें थे तिस समयमें एक श्रावकके घरमें ताडपत्रोंपर लिखी हुइ संघाचार नामा लघुभाष्यकी वृत्तिथी तिसकूं श्रीरत्नविजयजीनें वांची और कहने लगेके देखो इस वृत्तिमें भी तीन थुइ है इस्से हमारा मत सिद्ध है. तब तिनके पास जानेवाले श्रावकोंने एक चिठी लिखके तिस पुस्तकके पत्रेपर चेपदीनी तिस ९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy