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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ कहे छे, हालमा मुनि राजेंद्रसूरि, प्रतिक्रमणमां त्रण थोयो कहेवार्नु परुप्युं छे; परंतु अहींया अमदावादमां आठ दश हजार श्रावकनो संघ कहेवाय छे, तेमां कोइये त्रण थोयो प्रतिक्रमणमां कहेवी एम अंगीकार कर्यु नथी, आटली वात लखवानुं हेतु ए छे जे गाम सादरी तथा शीवगंज तथा रतलाम विगेरे देशावरथी श्रावकोना तथा साधुओना कागल आवे छे; तेमां एम लख्युं छे; जे अमदावाद शहेरमा घणा श्रावकोए तथा साधुजीयोए त्रण थोयोनुं मत अंगीकार कर्यु छे ए विगेरे असंभवित जुठा लखाण आव्या करे छे, ए बधुं खोटुं छे, तेथी तमोने आ शहेरना संघनी तरफथी साचे साचुं लखवामां आवे छे के, अहीयां त्रण थोयोनुं मत कोइयें कबुल कर्यु नथी वली मुनि राजेंद्रसूरिने पुछतां तेमनुं कहेवू एवं छे के, अमे कोइ देशावरे लख्युं नथी, तथा लखाव्युं पण नथी, ए रीतें तेमनुं कहेतुं छे. बीजुं सभा थइने तेमां मुनि श्रीआत्मारामजी महाराज हार्या एवं देशावरथी लखाण अहिंया आवे छे; पण भाइजी ए वात बधी खोटी छे, केमके ? अत्रे सभा थइ नथी तो हारवा जीतवानी वात बिलकुल खोटी छे, ते जाणजो. संवत् १९४१ ना कार्तिक सुद ६ वार सनेउ तारिख २५मी माहे अक्टोंबर सने १८८४ ली. प्रेमाभाइ हेमाभाइना प्रणाम वांचजो."
(४) इत्यादि बडे बडे तेवीस चौवीस शेठोंकी सही सहित पत्र छपवाके भेजे, चोमासा वीतत हूया पीछे मुनि श्रीआत्मारामजी श्रीसिद्धगिरि यात्रा करके सूरत शहेरमें चतुर्मास रहे, तहांसें पीछे श्रीपालीताणे चोमासा करा जब वहांसे विहार करके गाम श्रीमांडलमें फाल्गुन चतुर्मास करा, तहां मुनि आत्मारामजी महाराजके पास राधनपुर नगरका मुख्य जानकार श्रावक गोडीदास मोतीचंदजी आयके कहेने लगा के राघणपुर नगरमें रत्नविजयजी आये है, वो ऐसी प्ररुपणा करते है के प्रतिक्रमणके आदिमें तीन थुइ कहनी परंतु चोथी थुइ नही कहनी. इसी वास्ते में आपके पास विनंति करनेके
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