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________________ ६६ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - १ करनी कही है, सो मध्यम चैत्यवंदनाका मध्यमोत्कृष्ट तीसरा भेद है, अरु पूर्वोक्त नव भेदोंमें यह छट्ठा भेद है । सो तो एक आचार्यके मतें मृतक परिठव्यां पीछे करनी, हम मानते ही है। शेष लेख कल्पविशेष चूर्णि, कल्पबृहद्भाष्य, अरु आवश्यक वृत्तिमें जो है, तिसमें तो तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कहीही नही है । इस वास्ते जो कोइ इन पूर्वोक्त सूत्रोंका पाठ दिखलाय कर भोलें जीवोंकी प्रतिक्रमणके आद्यंतके चैत्यवंदनाकी चोथी थुइ छुडावे तो तिसकों निःसंदेह उत्सूत्र प्ररुपक कहना चाहियें; क्यों के ? जो कोइ हाथीके दांत देखे चाहे तिसकों कोइ गर्दभका श्रृंग दिखावे तो क्या वुंह बुद्धिमान गिना जाता है ! इति कल्पसामान्यचूर्णि, कल्पविशेषचूर्णि कल्पबृहद्भाष्य अरु आवश्यकवृत्तिनिर्णयः ॥ (२१) पूर्वपक्ष:- श्रीवंदनापन्नेमें तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, सो तुम क्यों नही मानते हो ? उत्तर:- हे सौम्य १ भावनगर, २ घोघा, ३ जामनगर ४ नींबडी, ५ पाटण, ६ राधनपुर, ७ वडोदरा, ८ खंभात, ९ अहमदावाद, १० सूरत, ११ वीकानेर इत्यादि स्थानोमें हमने अनुमानसे वीश ज्ञानभांडारोंका पुस्तक देखे, परंतु वंदनापन्ना किसी भंडारमें हमकों देखनेमें नही आया, इस्से विचार उत्पन्न हुआके औसे बडे बडे पुरातन भंडारोंमेसें कोइभी भंडारमें यह पुस्तक हमारे हस्तगत न भया ? तो क्या यह वंदनापइन्ना श्रीभद्रबाहु स्वामीने रचा है ? किं वा भद्रबाहु स्वामीके नामसें किस तीन थुइ मानने वाले मतपक्षीने रच दीया है ? जेकर श्रीभद्रबाहु स्वामीका रचा सिद्ध होवे तोभी इस पन्नेमें चौथी थुइका निषेध नही है, और जो इस पइन्नेमें तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, सो पूर्व कहेला नव भेदोमेंसें बडा मध्यमोत्कृष्टभेदकी तीन थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, यह चैत्यवंदना श्रीजिनमंदिरमें करनी कही है परंतु प्रतिक्रमणकी आद्यंतमें चैत्यवंदना करनी नही कही है। इस वास्ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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