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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ करीयें है तिसमें करणे ॥६३।। इस वास्ते है सौम्य छट्ठा भेद तीन थुइसें जो चैत्यवंदना करनेका है, सो चैत्यपरिवाडिमें करणेका है, ए परमार्थ है, अरु तुम जो कल्पभाष्यकी इस गाथाकू आलंबन करके चौथी थुइका तथा प्रतिक्रमणेकी आद्यंत चैत्यवंदनाकी चोथी थुइका निषेध करते हो, सो तो दहिके बदले कर्पास भक्षण करते हो ! इस्से यहभी जानने में आता है के जैनमतके शास्त्रोंकाभी तुमको यथार्थ बोध नही है, तो फेर चौथी थुइका निषेध करनाभी तुमकों उचित नही है। (१३) भणियं च श्रीकल्पभाष्ये गाथा ।। निस्सकडमनिस्सकडे, चेइए सव्वहिं थुई तिन्नि ॥ वेलं च चेइयाणिय नाओ इक्किक्किया वावि ॥१॥ व्याख्या :- एक निश्राकृत उसकों कहते हैं के जो गच्छके प्रतिबंधसे बना है, जैसा के ? यह हमारे गच्छका मंदिर है, दूसरा अनिश्राकृत सो जिस उपर किसी गच्छका प्रतिबंध नहीं है, इन सर्व जिनमंदिरोमें तीन थुइ पढनी जेकर सर्व मंदिरोमें तीन तीन थुइ पढतां बहुत काल लगता जाने अरु जिनमंदिरभी बहोत होवे तदा एक एक जिनमंदिरमें एकेक थुइ पढे, इस मुजब यह कल्पभाष्यगाथामें निःकेवल चैत्यपरिपाटीमें तीन थुइकी चैत्यवंदना पूर्वोक्त नव भेदोमेंसें छठे भेदकी करनी कही है। परंतु प्रतिक्रमणके आद्यंतकी चैत्यवंदना तीन थुइकी करनी किसीभी जैनशास्त्रोमें नही कही है। (१४) यही कल्पभाष्यकी गाथाका लेख हमारे रचे हुए जैनतत्त्वादर्श पुस्तकमें है, तिस लेखका यही उपर लिखा हुआ अभिप्राय है, तो फेर रत्नविजयजी अरु धनविजयजी जैनशास्त्रका और हमारा अभिप्राय जाने विना लोकोंके आगे कहते फिरते हैं के, आत्मारामजीनेभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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