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________________ ४८ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ गाथाका तात्पर्य नही मालुम होता है, इस वास्ते तुं तीन थुइ तीन थुइ पुकारता है ! क्योंके महाभाष्यमें नवभेदें चैत्यवंदना कही है, तिनमें तेरी तीन थुइकी वंदनाका बडा भेद है; (११) तथाच महाभाष्यपाठः ॥ एगनमोक्कारेणं, होइ कणिट्ठा जहन्नआ एसा ॥ जहसत्ति नमोक्कारा, जहनिया भन्नइ विजेट्ठा ॥१५४॥ सच्चिय सक्कथयंता, नेया जेट्ठा जहनिया सन्ना ॥ सच्चिय इरियावहिया, सहिया सक्थय दंडेहिं ॥१५५॥ मज्जिमकणिट्टि गेसा, मज्जिम मज्जिमउ होइ सा चेव ॥ चेइय दंडय थुइए गसंगया सव्व मज्जिमया ॥१५६॥ मज्जिम जट्ठा सच्चिय, तिन्नि थुई उ सिलोयतियजुत्ता ॥ उक्कोस कणिट्ठा पुण, सच्चिय सक्कत्थाइ जुया ॥१५७॥ थुइ जुयल जुयल एणं, दुगुणिय चेइय थयाइ दंडा जा ॥ सा उक्कोस विजेट्ठा, निद्दिठा पुव्वसूरीहिं ॥१५८॥ थोत्त पणिवाय दंडग, पणिहाण तिगेण संजुआएसा ॥ संपुन्ना विनेया, जेट्ठा उक्कोसिआ नाम ॥१५९॥ इनकी भाषा ॥ एक नमस्कार करनेसें जघन्यजघन्य प्रथम भेद ॥१॥ यथाशक्ति बहुत नमस्कार करनेसें जघन्यमध्यम दूसरा भेद ॥२॥ नमस्कार पीछे शक्रस्तव कहना, यह जघन्योत्कृष्ट तीसरा भेद ॥३॥ इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंडक एक, एक स्तुति यह कहनेसें मध्यमजघन्य चोथा भेद ॥४॥ इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंडक, एक थुई, लोगस्स, कहनेसें मध्यममध्यम पांचमा भेद ॥५|इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, अरिहंत चेइयाणं थुई, लोगस्स सव्वलोए थुई, पुक्खरवर, सुयस्स थुई, सिद्धाणंबुद्धाणं गाथा तीन इतना कहनेसें मध्यमोत्कृष्ट छट्ठा भेद ॥६॥ इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तवादिदंडक पांच, स्तुति चार, नमोत्थुणं, जावंति एक, जावंत एक, स्तवन एक, जयवीयराय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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