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________________ ३५४ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ ॥अर्थः।। श्रुतदेवी जेणे श्रुतअधिष्टित छे तेनी आशातना एम जे श्रुतदेवी नथी, छे तो शुं करनारी एम कहे तो आशातना तथा च आवश्यक बृहद्वृत्तौ तत्पाठः ॥ श्रुतदेवताया आशातना क्रियाप्राग्वत् आशातनातु श्रुतदेवता सा न विद्यते अकिंचित्करी वा नह्यनधिष्टितो मौनीद्रः खल्वागमः अतोसावस्तिनकिंचत्करीतामालंब्य प्रशस्त मनसः कर्मक्षय दर्शनात् ___ अर्थ।। श्रुतदेवीनी आशातना करवाथी अतिचार क्रिया पूर्वनी पेठे जाणवी । श्रुतदेवीनी आशातना केम लागें ते कहे छे । श्रुतदेवता भगवंती जे वाणी ते नथी, छे तो शुं करे छे, एहनी शी समर्थाइ छे ? एम कहे तेने कहीये कि तीर्थंकरनो आगम छे ते निश्चये अधिष्टायक विना नथी एटले ऐ श्रुतदेवी जिनेंद्रनी वाणी महा समर्थ छे, ए काइं नथी करती एम पण न जाणवू. केम के, जे भव्य प्राणी एने शुभ मनथी आलंबन करीने धारे छे तेनां कर्म क्षय थाय. ए पाठमां श्रुतदेवीना आलंबनथी कर्मनो क्षय दर्शाव्यो तेथी उत्सर्गे जिनवाणीनो संभव थाय" इस पाठके अर्थमें धनविजय ही लिखता है कि, "श्रुतदेवी जेणे श्रुत अधिष्ठित छे तेनी आशातना" आगे फिर आवश्यक बृहद्वृत्तिकी भाषामें धनविजय श्रुतदेवीका अर्थ भगवंतकी वाणी लिखता है अब हे भव्य ! तुम इसकें लेखसे ही विचार करोंकि, चूर्णिकी भाषामें तो लिखता हे कि "श्रुतदेवी जेणे श्रुत अधिष्ठित छे" इसका खुलासा अर्थ यह है, श्रुतदेवी तिसको कहते है, जो प्रवचनकी अधिष्टाता देवी है, अब इस उत्सूत्रीके करे अर्थका विचार करो के, प्रवचन, और भगवानकी वाणी, ये दो वस्तु नही है । जो प्रवचन है, सो भगवंतकी वाणी है । और, जो भगवंतकी वाणी है, सोइ प्रवचन है। अब तो प्रवचनकी अधिष्टाता देवी, अवश्यमेव सिद्ध भई । तिसकी आशातना चूर्णिकार वृतिकारोने वर्जनी कही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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