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________________ ३५० श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २ 1 संभव नही होता है । और रंगे हुए वस्त्र रखनेवाले तपगच्छ खरतरगच्छके सर्व संवेगी यतियोंकों सर्व श्रीसंघ कुलिंगी नहीं कहते है, इस वास्ते इनकों कुलींगी कहना यह भी मृषावाद है । जे कर कहोंगे, हम, और हमारी श्रद्धावाले श्रावक इन संवेगीयोंकों कुलींगी कहते है; यह भी कहना अयुक्त है । क्यों कि चार पांच मुर्ख बालकोंने मिलके, जे कर हाथीकों भेड (घेटे) का बच्चा कह दीया, तो क्या हाथी भेडका बच्चा हो गया ? और जो परिग्रहधारी होवेगा, सो तो चाहो श्वेत वस्त्रवाला होवे, चाहो रंगे वस्त्रवाला होवे, उसकों तो हम भी साधु नहीं मानते है । और जो लोकोंके आगे बगला भक्त, बन बैठे और ऊंट उपर चडे, भांग पीवे, रात्रिमें दीपकके प्रकाशमें स्त्रीयोंको ज्ञान शिखावे, और मुखसें कहे साधुकों दीपकके प्रकाशमें ज्ञान पढना शास्त्रमें चला है । ऐसा झूठ बोले, जिनप्रतिमाकी पलांठी उपरका पुराना लेख छेदन करके अपना नाम लिखवावे, लिखारीयोंसें व्याज लेवे, लिखारीके लिखे श्लोक गिणतीमें कमती कर दे, लिखारीयोंसें लडे, ऐसेको भी हम साधु नहीं मानते है । I और जो तपगच्छके श्री मुनिसुंदरसूरिके शिष्य श्री हेमभूषणजीने जो पूर्वाचार्य रचित काव्यमें लिखा है कि, अमुक तीन थुइ माननेवालोंका पंथ संवत् १२५० में स्वाग्रहसें कलिकालमें निकला। इस लेखसें जो चोथी थुइ प्रतिक्रमणकी आद्यंतमें निषेध करते है, वे मिथ्यादृष्टि सिद्ध होते है 1 और तीन थुइके मतका उद्धार इन धनविजय राजेंद्रसूरिनें दीर्घ संसार भ्रमण अंगीकार करके करा है, इस वास्ते येह धनविजयादि जैन सिद्धांत, चतुर्विध संघ, तपगच्छ, खरतरगच्छ और उपकेशगच्छादि गच्छोके विरोधी है । (५०) हमारे सुणनेमें तो ऐसा भी आया है कि, बिचारा राजेंद्रसूरि तो इस तीन थुइ रुप कुमतकों छोड़नाभी चाहता है, परंतु यह धनविजय दुराग्रही नही छोडने देता है. कहवतमें भी कहा है कि रांडे तो बिचारीयां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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