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________________ ३४२ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ तब अवश्यमेव ही पोल नीकलेगी। (४६) जैसे एक ग्राममें एक अपठित ब्राह्मण रहता था, परंतु अपने मनमें पंडिताइका बडा अभिमान रखता था, और ग्रामके लोकभी अपने मनमें बडा पंडित उसकों मानते थे । एक दिन कोइ षट्शास्त्रका वेत्ता पंडित पुस्तकोंके कितनेक पोठिये लदहुए साथ लेके आया, तब तिस पंडितकों देखके ग्रामके लोक कहने लगेकि हमारे पंडितके साथ चरचा करोंगे ? तब पंडितने कहा, हां करुंगा । तब तिन ग्रामके लोकोंने तिस अपठितकों ल्याके पंडितके पास बैठा दीया । तब पंडितने तिस मूर्खको पूछा कि, चरचा करोंगे ? तब अपठित कहने लगा कि चरचा मरचा और करचा तीनोंही करूंगा. यह बात सुनकर पंडित विचार करने लगा कि चरचाका स्वरुप तो मैं जानता हुं,परंतु मरचा और करचा यह क्या होती है ? येह शब्द तो मैंने कदेइ नही सुने है । तब ग्रामके लोकोने ताली पीट दीइ कि हमारा, पंडित जीत गया। क्योंकि, यह पंडित तो एक चरचा ही जानता है; और हमारा पंडित मरचा करचा यह दो अधिक जानता है । पीछे तिस पंडितका सर्व असबाब छीनकें तहांसे निकाल दीया । तब तिस पंडितने जिस राजाके राज्यमें वो गाम था, तिस राजेकी सभामें जाकर, सर्व समाचार कहा । तब राजाने तिस अपठित ब्राह्मणकों, तथा तिसके पक्षीयोंको बुलवाके पंडितोंकी सभामें चरचा करवाइ । तब तो अपठितकी पोल जाहिर हुइ । राजाने ग्रामके लोक, और अपठित ब्राह्मणकों महा दंड दीया; और पंडितका माल पंडितको दिलवा दीया । इसीतरें यह श्रीधनविजयजी मरचा करचा लिखके एक बडी पोथी बनाके अपठित पक्षपाती मतांध बनियोंमें पंडित बन रहा है; परंतु जब तपगच्छ खरतरगच्छके पंडित साधु यतियोंके आगे पंडितोकी सभामें मरचा करचा रुप पोथीकों सच्ची सिद्ध करेगा, तब इसकों अपनी पंडिताइकी खबर पडेगी। इस तरेंका दृष्टांत बृहत्कल्पभाष्यमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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