________________
३२२
श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ पण उतारे, ए रीते बे सामाचारी कही छे तो खरतरवाले एकज पाठ केम लख्यो ए पण विचारज्यो.
(३५) तथा “पच्छा इरियावहियं पडिक्कमइ” ए पदनुं व्याख्यान ते ए छे "पश्चात् ईर्यापथिकायाः प्रतिक्रामतीत्यत्रपंचमी विभक्तिर्गमनव्यावर्तिलक्षणास्ति एतावतागंतव्यक्रियाव्यावृत्तः सन स्वाध्यायादि- परायणो भवति यथापुष्कलिना संखसमीपागतेन ईप्रतिक्रम्य पृथ्व्यादिप्रमार्जनंच कृत्वा परिमितक्षेत्रादौ उपवेशनादिकं विहितं"
॥ व्याख्या ॥ इर्यावहिया जे जावानी क्रिया तेह थकी निवर्त्तन करे एटले सामायिकमें थिरपणे वर्ते, एहवो अर्थ छे. इहां पांचमी विभक्ति छे ते जावानी क्रियानी निषेधनी करनारी छे एटले एम का ए जवानी क्रिया थकी निवों थको सज्झाय प्रमुख करवाने तत्पर थइने प्रवर्ते, जेम पुष्कलिनामा श्रावक संख श्रावकने पासे जइने इर्यावहिनी क्रिया करीने तेहथी निवर्तन करीने त्रणवार भूमि पूंजिने परिमित क्षेत्रे बेसीने यथारीत करता हवाए अर्थ छे ते जाणवू तथा श्री महानिशीथमां का जे इरियावहि पडिक्कमीने सर्व करणी करवी ते उपर साहमावाला सामायिकमां इरियावहि प्रथम थकी नथी पडिक्कमता, सामायिक लेइने पडिक्कमे छे तेहने पूछवू, जे पहेला इरियावहि पडिक्कमतां शुं दूषण लागे छे तथा सामायिकतो लीधुं सावध जोगथकी निव? छे, हवे इरियावही पडिक्कमवाथी शुं अधिक करशो ? तथा पोसह लेतां पहेलां इरियावहिया केम पडिक्कमो छो? तथा साधु ने पडिक्कमणुं करतां प्रथम ईर्यावहि किम पडिक्कमो छो अने श्रावकने केम पडिक्कमावता नथी इत्यादि घणी चरचा छे ते पत्र मध्ये केटली लखिए
तथा श्री देवगुप्तसूरिकृत नवपद विवरणने विषे पण इम का छे, जे प्रथम थकी पोताने घरे सामायिक करे तो "ईरियावहिया पडिक्कमइ" कहेतां तो इरियावहियां पडिक्कमे "तो चेइयाइं वंदई" कहेतां तेवार पछी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org