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________________ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २ I भरुयच्छ पाटन मेहसाणादिककों श्री संघ तिस पुस्तककों अपने नगरमें मंगवाके तिसका पाठ देखे, और जो मेरे लिखे समान पाठ निकले तो इन श्रीधनविजय- राजेंद्रसूरिजीका मृषालेख रुप अन्याय छापेमें छपवाकर सर्व देशके श्री संघको विदित करणा चाहिये । जेकर यह काम श्री संघ न करेगा तो मैं मानुंगा कि, श्री संघके घरमें न्याय नही है । और संघ भी इस महा पापका भागी होगा । श्री संघके विना किसके आगे फिरियाद करूं जेकर श्री संध इस मेरे लेखपर ध्यान न देवेगा, तो मेरा क्या जोर है ? इस श्रीधनविजय- राजेंद्रसूरिजीने जब दीपक बाबत आगे श्री अहमदावादमें झूठ बोला था और झूठा ही नवपद प्रकरणका नाम लीया था, हमने तो प्रायः तबसें ही इनकों मृषावादी उत्सूत्रभाषी जानके इनके साथ संभाषण करना बंद करा था। और इस पोथी के इस झूठे लेखकों देखके तो हमको निश्चय हुआ कि, इस समान मृषावादी अधर्मी उत्सूत्रभाषी कोइ भी जैनमतमें पुरुष होवेगा । अहो भव्य जीवो ! इन मृषावादी कुपंथीयोकी संगत और दर्शन और इनके मुखसे व्याख्यान सुनना और इनकों जैनमतके 'साधु मानने महा पापका हेतु है. हम नही जानते ये कौन अधम जीव जैनके यतिका भेख किस वास्ते लीए फिरते है ? आगे हमने लोकोंके और कितनेक साधुयोंके मुखमें इनके अनेक अनाचार सुने थे, जो लिखने योग्य नही है, परंतु हमकों पूरे पूरी प्रतीति नही आती थी । परंतु इनकी इस थोथी पोथीके झूठे लेखोंकों देखके अब निश्चय हो गया है कि, जो अकृत्य करे इनोंके लोक कहते थे, वे सर्व सत्य ही होवेगे. २९० (२२) इन की इस पोथीके लेखको देखके मेरा मनतो इस्से अधिक उत्तर लिखनेसें हट गया था, परंतु प्रेरकोकी प्रेरणासें फिर लिखनेमें प्रवृत्त हूआ हूं । यह धनविजय अपने पुस्तककी समाप्तिमें पृष्ट ६९९ में लिखता है कि, कुवादीका वाक्स्तंभन करनेवाला मंत्र आराधके मैने यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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