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________________ २८ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ ॥श्रीजैनधर्मो जयतितराम् ॥ अथ न्यायांभोनिधि-मुनिश्रीमद् "आत्मारामजी आनंदविजयजी" विरचित चतुर्थ स्तुति निर्णयाख्य ग्रंथ प्रारंभः ॥ तत्रादौ मंगलप्रक्रमः। (१) नमः श्रीज्ञातपुत्राय, महावीराय श्रेयसे ।। रत्नत्रयनिधानाय, जिनेंद्राय जगद्विदे ॥१॥ (अनुष्टप्वृत्तम्) अन्यानपि स्तौमि जिनेंद्रचंद्रान्, ध्यायामि साक्षाच्छुतदेवतां च ॥ रत्नत्रयश्रीसमलंकृतांगान्, प्रारब्धसिद्ध्यै सुगुरून् श्रयामि ॥२॥ (इंद्रवज्रावृत्तम्) शिष्टाः खलु क्वचिदभीष्टवस्तुनि प्रवर्तमाना इष्टदेवतानमस्कारपूर्वकमेव प्रायः प्रवर्तते । इष्टदेवतानमस्कारपूर्वकं प्रवर्तमानानां च देवताविषयशुभभावसमूहविघ्रव्यपोहत्वेन प्रारब्धशास्त्रे प्रवृत्तिरपि अप्रतिहतप्रसरा स्यात् । अतः प्रथमं मंगलोपन्यासः। अभिधेयं चात्र मुख्यवृत्त्या चतुर्थस्तुतिनिर्णय एव, निरभिधेये (मंडूकजटाकेशगणनसंख्यायामिव) न प्रेक्षावतां प्रवृत्तिः । संबंधश्चात्र वाच्यवाचकभावो नाम व्यक्त एव, प्रयोजनं तु चतुर्थस्तुतिसंशयगर्तपतितानां जनानामुद्धरणम्-इति । (२) ॥ यह वर्तमान कालमें रत्नविजयजी अरु धनविजयजीने प्रतिक्रमणेकी आदिकी चैत्यवंदनमें तीन थुइ कहेनेका पंथ चलाया है, सो जैनमतके शास्त्रानुसार नही है, तिसका निर्णय लिखते है। प्रथम जो रत्नविजयजी तीन थुइकी थापना करते हैं सो हमने श्रावकोंके मुखसे इसी माफक सुनी है। एक बृहत्कल्पकी गाथा, दूसरी व्यवहार सूत्रकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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