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________________ २८८ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ नगरोंके बजारोमें फेरना चाहिये और उदघोषणा (डौंडी) बजवाके संघको ऐसे कहना चाहिये कि, इस श्रीधनविजयजी मृषावादीने जो श्रीआत्मारामजीकी बाबत झूठा लेख लिखा है, तिसका इसको इस लोकमें श्री संघने यह दंड दीना है, और परलोकमें इस बिचारे मृषावादीकों क्या जाने इस झूठे लेख लिखनेका क्या दंड होवेगा ? और इस मृषावादीका कहना सर्व श्री संघकों न मानना चाहिये । तथा इनके श्रावक तीन थुइ माननेवालोंकों हम यह कहते है कि, यदि तुम अरिहंतो का कथन करा हुआ धर्मको सच्च मानते हो तो, श्री राधनपुरके ज्ञानमंडारमें श्री धर्मसंग्रहका पुराना पुस्तक देखके निर्णय कर लो और जो उस पुस्तकमें मेरे लिखे समान पाठ होवे तो इस श्रीधनविजय-राजेंद्रसूरिजीको मिथ्याभाषी अधर्मी महा कलंकके दाता और जिनमार्गकी श्रद्धामें भ्रष्ट जान करके इनको तथा इनके प्ररुपे तीनथुइ आदि मिथ्यामतको त्याग देवो । और श्री तपगच्छमें प्रचलित शुद्ध सामाचारीको ग्रहण करो । जे कर पूर्वोक्त लेखका निर्णय श्री राधनपुरके भंडारका पुस्तक देखके न करोंगे, तो तुम भी सर्व इनके समान ही गिने जावोंगे । और श्री तपगच्छादि अन्य गच्छोंके श्रावकों तथा साधुयों प्रते हमारी नम्रतापूर्वक यह विनंती है कि, जेकर आपको ऐसा निश्चय है कि श्री साधु आत्माराम आनंदविजयजीने श्री राधनपुरके भंडारके पुस्तक श्री धर्म संग्रहके लेख विना चतुर्थ स्तुति निर्णय ग्रंथमें पाठ स्वकपोल कल्पित नवीन रचके लिखा होवेगा तब तो इन श्रीधनविजय-राजेंद्रसूरिजी मृषावादी मिथ्यादृष्टियों का अनादर करना । जेकर मेरे लेखमें आप सर्व सज्ञजनोकों संशय होवे कि, क्या जाने आत्मारामजीका लेख श्री राधनपुरके श्री धर्मसंग्रहके अनुसार हे वा नही ? तो श्री संघके दो चार पठित श्रावक या यति वा साधु श्री राधनपुर जाके अथवा श्री सीरचंदभाईके बडोका मोल लीया हुआ श्री धर्मसंग्रहका पुस्तक श्री अहमदावाद भावनगर सूरत बडोदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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