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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२
अनिश्राकृत सर्व चैत्यमां त्रण थुइए देववंदन कह्युं छे. तथा जिनगृहमां द्रव्यपूजा करी जधन्यादि त्रण भेदे चैत्यवंदना कही छे तेमां कल्पभाष्य व्यवहार भाष्य गाथा आश्रित त्रण थुइए तथा प्रकारांतरथी च्यार थुइए देववंदना कही छे पण एकांत च्यार थुइएज कही नथी ने संघाचार भाष्यनी सम्मतिथी नव प्रकारनी चैत्यवंदनानो पाठ आ धर्मसंग्रहना जीर्ण पुस्तकमां लखावट छे ज नही पण आत्मारामजी आनंदविजयजी स्वकपोल कल्पित च्यार थुइए नव प्रकारनं चैत्यवंदन थापवाने पोताना नवा लखावेला पुस्तकोनां "संघाचारवृत्तौ चैतद्राथा व्याख्यानबृहद्भाष्यसंमत्या नवधा चैत्यवंदना व्याख्याता" इत्या दिकथी यावत् "चेइयपरिवाडिमाइसु" इहां सुधी नव प्रकारना जंत्र सहित भवरुपी पिशाचना डाचामां पडवाने भवभ्रमणनो भय अवगुणीने पत्र ९९ नी पृष्ट बीजी ओली आठमीथी पत्र १०० नी पृष्ट १ ओली त्रीजी सुधी पोतानी परतमां नवो पाठ प्रक्षेप करयो"
इत्यादिक कइ असमंजसे वातां लिखियां है । परंतु जेकर श्री आत्मारामजीने ऐसा काम करा होवेगा तब तो इस श्रीधनविजयजीका लिखना सर्व सत्य है, और श्रीआत्मारामजीको जैनधर्मी किसी भी श्रावक वा साधुको न मानना चाहिये और आत्माराम अनंत काल तक संसारमें भ्रमण करेगा यह इसको दंड होना चाहिये । परंतु श्रीआत्मारामजीने जो पाठ धर्मसंग्रहका चतुर्थस्तुतिनिर्णय ग्रंथमें लिखा है सो तिस पाठवाला धर्मसंग्रहका पुस्तक श्री राघनपुरमें श्री ऋषभदेवजीके ज्ञानभंडारमें श्री शेठ सीरचंदभाइ सांकलचंदजीके बडोका मोल लीया हुआ शेठ श्री सीरचंदभाईके आधीन है, तिस पुस्तकसें लिखा है । जे कर पूर्वोक्त पाठ तिस पुस्तकमें न निकले तो श्री चतुर्विध संघकी जो मरजी आवे सो इस लोकमें विटंबना रुप दंड देवे जेकर तिस पुस्तकमें पूर्वोक्त पाठ होवे तो इस श्रीधनविजयजी मिथ्या लिखनेवालेका मुख काला करके श्री अहमदावादादि
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