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________________ २५० श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ श्री राजेंद्रसूरिजीने कितने ही कलाकों तक वो पुस्तक देखा, परंतु पूर्वोक्त दीपकका अधिकार तो नही नीकला । तब श्रीराजेंद्रसूरिजी कहने लगा कि यह पुस्तक यहां छोड जाओ तो में पीछेसें नीकाल रखूंगा, तब प्रमोदविजय पुस्तक तहां ही छोड आए, अगले दिन दोपरे पीछे प्रमोदविजयादि फेर राजेंद्रसूरिके पास गए, और कहा कि वो स्थल दिखलाओ ? नवपद प्रकरणमें तो वो स्थल नीकला नहीं. वो बिचारा क्या दिखलावे ? (३) तब प्रमोदविजय श्रीराजेंन्द्रसूरिजीको उत्सूत्र और मृषावादी जानके अपना पुस्तक लेके शेठ दलपतभाइके मकानमें आ गए तबहीसें हमने इनको उत्सूत्र भाषी और मृषा प्ररुपणाका प्रायश्चित साधुयों समक्ष न लेनेसें इनका ज्ञान और महाव्रत जान लीए थे. फेर कच्छदेश कोडाय ग्रामवासी श्रावक रवजी देवराज, और भृगुकच्छवासी श्रावक अनूपचंद मलूकचंदजी भी इनके पास गए थे, उनोनें भी इनको सम्यग्वादी नही जाना । तथा अहमदावादमें लोहारकी पोलके उपाश्रयमें रहनेवाला एक सोमविजय नामा अपठित साधु कों इनोनें अपनेमे मिलाय लीना, तब लल्लुभाई सूरचंद छापेवालेने सोमविजयजी बाबत कुछक लेख छापा, तब इनोनें और इनके पास जानेवालोंने विना प्रयोजन ही हमारी और हमारे गुरु महाराज श्री बुद्धिविजयजीकी बहुत निंदा छपवाई । तब दलपतभाईने लल्लु सूरचंदकों छापा छपानेसें बंद करा । इत्यादि अनेक हेतुयोसें हमने इनको उत्कट कषाइ, क्रोधी, अभिमानी, छली, मृषाभाषी जानके इनके साथ बातचीत करनेकी उपेक्षा करी । इतने में इनोने दिशावरोंमें जूठी चिठीयां लिखवाके तिनमें लिखवाया के सभामें चरचा हुइ । तिसमें श्री आत्मारामजी हार गया, और श्रीराजेंद्रसूरिजी जीता. तब शिवगंज, सादडी, रतलाम प्रमुख सहरोमें जैनमती श्रावकोंकी चिठीयां शेठ प्रेमाभाईके नामसे आइयां । तिनमें लिखा के तीन थूइ मानने वाले श्रावकोके पास अहमदावादसें चिठीयां आइयां है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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