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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
(२) इनके उपाश्रयमें दीपक जलते है, और उपाश्रयके अग्रादि भागमें ठंडकके वास्ते इनके श्रावक कच्चे पानीका छिडकाव कराते है, और एक जयविजय नामा इनका शिष्य इनकी कुछक असमंजस चाल चलने देखके इनको छोडके अहमदावादकी विद्याशालामें आन रहा था । तिसने छोटेलालादि कितनेक श्रावकोंके आगे इनकी क्रिया करतूत बहुत जाहिर करी थी । सो हमको भी उसने इनकी हानीकारक कितनीक बात सुणाइ । तब हमने ये पूर्वोक्त कथन सुणके मनमें विचारा कि चाहो पूर्वोक्त कथन सत्य हो वा असत्य हो, हमारे इस्से कुछ प्रयोजन नही, किंतु इसने दीपकके प्रकाशमें साधु रात्रिकों पुस्तक पढे, ऐसी प्ररूपणा करी है, वा नही ? इसका निश्चय करना चाहिये. तब हमारे शिष्य प्रमोदविजयजीने स्थंडिलभूमि गए हुए थे. साबरमती नदी के रेत स्थलमें श्रीराजेंद्रसूरिजीको पूछा कि तुमने पूर्वोक्त दीपककी प्ररूपणा करी है ? तब तिसने कहां, हां करी है । तब प्रमोदविजयने पूछा कि तुमारा कथन कौनसे शास्त्रानुसार है ? तब राजेंद्रसूरिने कहा पूर्वोक्त दीपकका अधिकार नवपद प्रकरणमें कथन करा है | तब प्रमोदविजय मेरेसें आके कहने लगा कि उनोने दीपककी प्ररूपणा तो करी है, परंतु नवपद प्रकरणमें बतलाते है । तब मैने विचारा कि ये ऐसे मनमें जानते होवेंगि कि ये साधु उतर देशसें आए है, इनोने नवपद प्रकरण नही देखा होवेंगा, इस वास्ते एक गप्प ही ठोको । जो चल जाएगी तो हम सच्चे हो जावेंगे. तब मैने नवपद प्रकरण पोथीमेसें निकालके प्रमोदविजयकों दीया । तब प्रमोदविजय और शांतिविजय दोनों पुस्तक लेके पांजरापोलके उपाश्रयमें श्रीराजेंद्रसूरिजीके पास गये, और कहा कि नवपद प्रकरणके जिस स्थलमें पूर्वोक्त दीपककी प्ररूपणा चली है, सो दिखलाओ ? तब श्रीराजेंद्रसूरिजी कहने लगा कि नवपद प्रकरणका पुस्तक मेरे पास इस खत नही है । तब प्रमोदविजयने अपना नवपद प्रकरणका पुस्तक उसके आगे रख्खा, और कहा कि कृपा करके वो स्थल दिखलाओ ? तब
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