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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ गांधारी, मानसी, महामानसी, काली, महाकाली, वैरोट्या, वाग्देवता, श्रुतदेवी, गौरी, अंबा, यक्षराट, अंबिका, इसतरें अनुक्रमसें चौवीस थुइयोंमें इन देवतायोंकी स्तवना करी है, सो ग्रंथ गौरवताके भयसें सर्व थुइयां तो यहां नही लिखते है, जेकर किसीकों देखनी होवे तो ग्रंथ मेरे पास है सो आकर देख लेनी. तथापि तिनमेसें बावीशमें श्रीनेमिनाथके संबंधकी चार थुइयां यहां लिख देते हैं.
तथा च तत्पाठः ॥ चिरपरिचित लक्ष्मी प्रोष्भ्यसिद्धौरतारा, दमरसदृशमा वर्जितां देहि नेमे ॥ भवजलनिधिमज्जज्जंतुनिर्व्याबंधो दमरसदृशमा वर्जितां देहि नेमे ॥८२॥ विदधदिह यदाज्ञां निर्वृतौ शं मणीनां सुखनिरतनुतानोनुत्तमास्ते महांतः ॥ ददतु विपुलभद्रां द्राग् जिनेंद्राः श्रियं स्वः सुखनिरतनुतानोनुत्तमास्ते महांतः ॥८६॥ कृतसमुतिबद्धिध्वस्तरुग्मृत्युदोषं परममृतसमानं मानसं पातकांतं ॥ प्रतिदृढरुचि कृत्वा शासनं जैनचंद्रं परममृतसमानं मानसं पातकांतं ॥८७॥ जिनवचनकृतास्था संश्रिता कम्रमानं, समुदित सुमनस्क दिव्यसौदामनीरुक् ॥ दिशतु सततमंबा भूतिपुष्पात्मकं नः समुदितसुमनस्कदिव्यसौदामनीरुक् ॥४८॥
(८१) तथा श्रीजिनेश्वरसूरिका शिष्य और नवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेव सूरिजीका गुरु भाइ, संसाराव- स्थामें श्रीधनपाल पंडितका सगा भाइ, संवत् १०२९ के लगभगमें श्रीशोभानाचार्य महामुनि हूए है, तिनोने श्रीबप्पनभट्ट सूरिजीकी तरें चौवीस चोक छांनवे थुइयां रची है तिनमेंभी चौवीशे चोथी थुइयोंमें अनुक्रमसें श्रुतदेवता, मानसी, वज्रश्रृंखला, रोहिणी, काली, गंधारी, महामानसी, वज्रांकुशी, ज्वलनायुद्धा, मानवी, महाकाली, श्रीशांतिदेवी, रोहिणी, अच्युता, प्रज्ञप्ति, ब्रह्मशांति यक्ष, पुरुषदत्ता, चक्रधरा, कपर्दियक्ष, गौरी, काली, अंबा, वैरोट्या, अंबिका,
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