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________________ २३४ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ जिस पुरुषको तिन पदकी जगें नवीन पद प्रक्षेप करतेभी कुछ भय नही आता है, परंतु और इस्सें आनंद मान लेता है तो फेर तिसकों अन्य पाप करणेंसेभी क्या भय होवेगा? जो अन्यायमें आनंद माने तिसकों न्यायवचन कैसें प्रिय लगें? तथा श्रीपाक्षिकसूत्रका पाठ यहां लिखते हैं । (७८) सुअ देवया भगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं ॥ तेसिं खवेउ सययं, जेसिं सुअसायरे भत्ती ॥१॥ व्याख्या ॥ सूत्रपरिसमाप्तौ श्रुतदेवतां विज्ञापयितुमाह सुअ० श्रुतदेवता संभवति च श्रुताधिष्ठातृदेवता भगवती पूज्या ज्ञानावरणीयकर्मसंघातं ज्ञानघ्नकर्मनिवहं तेषां प्राणिनां क्षपयतु क्षयं नयतु । सततं येषां श्रुतमेवातिगंभीरतया अतिशयरत्नप्रचुरतया च सागरस्तस्मिन् भक्तिर्बहुमाना विनयश्च समस्तीति गम्यते ॥ इसकी भाषा लिखते है. सूत्रकी समाप्तिमें श्रुतदेवीकों विज्ञापना करते है. सुअ० ॥ श्रुतदेवता श्रुतकी अधिष्ठात्री, देवी भगवती पूजने योग्य तिस्फू बिनंति करते हैके ज्ञानावरणीय कर्मके समूहकों हे श्रुतदेवी तुं निरंतर क्षय कर दे, जिनपुरुषोंके भगवंतभाषित श्रुतसागरविषे भक्ति बहुमान है तिन पुरुषोंके ज्ञानावरणीयकर्मका समूहकों क्षय कर दें. इस पाठमें श्रुतदेवीकी विनंति करे तो ज्ञानावरणीयकर्मक्षय होवे, ऐसा कहा है. इस वास्ते जो कोइ श्रुतदेवीका कायोत्सर्ग और तिस्की थुइका निषेध करता है, सो जिनमतके ज्ञानरुप नेत्रोंसे रहित है, ऐसा जानना. परंतु ऐसा भोले लोगोकों न कहनाकि यह हमारी निंदा करी है ? परंतु अपने हृदयमें कुछ विचार करके मुखसें कथन करना तो सब तरहेंसें सुखदाइ होवेगा, जिससे आपकों बहुत लाभ होवेगा, उलटा पासा आपका पडा गया है, तिसकों सुलटा करणा सो आपकेही हाथ है सो आप बूज जावेंगे अरु सुद्धमार्गकी राहपर चलेंगें यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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