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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१
इस ग्रंथमें जे जे शास्त्रोंकी साख दिनी है तिसका नाम ।
(यहां कहीं कहीं एक ग्रंथका जो दोवार तीन वार नाम लिखा है, सो न्यारे न्यारे प्रयोजन वास्ते है. कहीं चौथी थुइ वास्ते, कहीं श्रुतदेवता क्षेत्रदेवता वास्ते, कहीं सप्तवार चैत्यवंदनाकी गिनती वास्ते, इत्यादि अन्य अन्य प्रयोजनके वास्ते कहीं कहीं किसी किसी ग्रंथके दो तीन वार नाम लिखे है। इस वास्ते पुनरुक्त है ऐसा समजना नही ।) १. धर्मरत्न देवेंद्रसूरिकृत । १२. कल्पभाष्य संघदासगणिकृत । २. जीवानुशासन श्रीदेवसूरिकृत। | १३. पुनः महाभाष्य शांतिसूरिकृत । ३. श्रीमहानिशीथ गणधरकृत। | १४. पुनः महाभाष्य शांतिसूरिकृत । ४. पंचाशक हरिभद्रसूरिकृत । १५. व्यवहारभाष्य ५. महाभाष्य शांत्याचार्यकृत । संघदासगणिकृत। ६. विचारामृतसंग्रह
१६. संघाचारभाष्यवृत्ति श्रीकुलमंडनसूरिकृत। धर्मघोषसूरिकृत। ७. प्रवचनसारोद्धारसूत्रवृत्ति १७. कल्पसामान्यचूर्णि पूर्वधरकृत ।
श्रीनेमिचंद्रसूरिकृत | १८. कल्पविशेषचूर्णि मूल और
पूर्वधाराचार्यकृत। श्रीसिद्धसेनसूरिकृतवृत्ति । । १९. कल्पबृहद्भाष्य ८. पुनः पंचाशकवृत्ति
पूर्वधराचार्यकृत। श्रीअभयदेवसूरिकृत। २०. आवश्यकवृत्ति ९. उपदेशपदवृत्ति
हरिभद्रसूरिकृत। ___ श्रीमुनिचंद्रसूरिकृत। | २१. वंदनकपइन्ना० १०. ललितविस्तरापंजिका श्रीमुनि० | २२. प्रवचनसारोद्धारसूत्रवृत्ति । ११. पुनः महाभाष्य शांत्याचार्यकृत ।। २३. यतिदिनचर्या श्रीदेवसूरिकृत ।
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