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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ उज्झोअगरं, चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मतो ॥ (अयंदर्शनस्य लो, ॥१॥२॥) पुक्खरवरदीवढं, कढइ सुअ सोहणनिमित्तं ॥८॥ पुण पणविसोस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा ॥ (अयं ज्ञानस्यलो, ०१॥३॥) तो सयल कुसल किरिया, फलाण सिद्धाण पढइ थय ॥९॥ अहसुअसमिद्धिहेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं ॥ चिंतइ नमुक्कारं, सुणइ वदेइ व तीइ थुई ॥१०॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई ॥ पढिऊण पंचमंगल, मुवविसइ पमज्ज संडासे ॥११॥ इति पंचमावश्यकम् ॥५॥ पुव्वविहिणेव पेहिय, पुत्तिदाऊण वंदणं गुरुणो ॥ इति षष्ठमावश्यकम् ॥६॥ इच्छामो अणुसठिंति, भणियं जाणुहितो ठाइ ॥१२॥ गुरुथुइ गहणे थुइ तिन्नि वद्धमाणक्खरस्सरा पढई ॥ सक्वत्थवं अपढिय. कुणइ पच्छित्त उस्सग्गं ॥१३॥ एवं ता देवसिय ॥ इति दैवसिक प्रतिक्रमण विधिः ॥१॥राइमवि एवमेव नवरितहिं पढमं दाउं मिच्छामि दुक्कडं पढइ सक्कथयं ॥१॥ उठिय करेइ विहिणा, उस्सग्गं चिंतए अउज्झोअं ॥ अयं ज्ञानस्य कायोत्सर्गः लो, ॥१॥ बियं दंसणसुद्धिइ ॥ अयं द्वितीयो दर्शनस्य लो, ११२। चिंतए तत्थइममेव ॥२॥ तइए निसाइआरं जहक्कम चिंतिऊण पारेइ ॥ इति तृतीयाश्चारित्रस्य लो, ॥१३॥ इति प्रथममावश्यकम् ॥१॥ सिद्धत्थयं पडित्ता, पमज्जसंडास मुवविसइ (इति द्वितीयमावश्यकम् ॥२॥०) पुव्वं च पुत्ति पेहण वंदण मालोय (इति तृतीयमावश्यकम् ॥३॥) सुत्तपढणं च ॥ वंदण खामण वंदण गाहतिगपढण (इति चतुर्थमावश्यकम् ॥४॥) उस्सग्गो ॥४॥ तत्थचिंतइ संजम, जोगाण न होइ जणमेहाणी ॥ तं पडिवज्झामि तवं, छम्मासं तान काउ मलं ॥५॥ एमाइ इगुणतीसुण, यं पीनसहो न पंच मासमवि ॥ एवं चउ तिउ मासं, न समत्थो एगमासंपि ॥६॥ जा तंपि तेर सुण चउ, तीसइ माइउ दुहाणीए ॥ जा चउच्छंनो आयंबिलाइ जापोरिसी नमोवा ॥७॥ जं
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