SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - १ अइया रुस्सग्गो पोत्तिवंदणा लोए ॥ सुत्तं वंदण खामण, वंदन तिन्नेव उस्सग्गा ॥ १ ॥ चरणे दंसणनाणे, उज्जोयादोणि एक्क एक्का य ॥ सुयखेत्तदेवउस्सग्गो पोत्तिय वंदण थुई थुत्तं ॥ २ ॥ पुणरवि खमासमण पुव्वं इच्छकारि तुम्हेम्हं संमत्त सामाइय सुयसामाइयस्स रोवणत्थं नंदिकरावणियं देंवे वंदावेह | गुरु वंदेहत्ति भणित्तातं वामपासे ठविता तेण समं व ंति आहिं ॥ थुईहिं देवे वंदावेइ सिद्धत्थय पज्जंतेय सिरिति १ संति २ पवयण ३ भवण ४ खित्ताय देवयाण ५ तहा वेयावच्चगराणय ६ उस्सग्गा हुंति कायव्वा केवलं शांतिनाथाराधनार्थं कायोत्सर्गः सागरवरगंभीरेत्यंतं लोगस्सुज्जोयगराचिंतनतः सप्तविंशत्युच्छ्छा - समानः कार्यः । शेषेषु तु नमस्कारचिंतनं क्रमेण स्तुतयः श्रीमते शांतिनाथायेत्यादि ॥ १ ॥ उन्मृष्टरिष्टेत्यादि ॥२॥ यस्याः प्रसादेत्यादि ॥३॥ ज्ञानादिगुणेत्यादि ॥ ४ ॥ यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्येत्यादि ॥५॥ सर्वे यक्षांबिकेत्यादि ॥ ६ ॥ तओ नमोक्कारं कट्ठिय जाणु सुभविअ सक्कत्थओ अरिहाणाइ त्थोत्तं च भणिजइ जयवीयरायेत्यादिगाथे च इतीयं प्रक्रिया सर्वनंदीषु तुल्यत्वे तत्समोच्चारणत्वं चइय वंदणाणंतरं खमासमण पुव्वं भणेइ ॥ (५३) इन पाठोंका भावार्थ :- राईपडिक्कमणेके अंतमें चार थुईसें चैत्यवंदना करनी कही है. हम उपर जितने शास्त्रोंकी साक्षीसें देवसि पडिक्कमणेका विधि लिख आए है. तिन सर्व ग्रंथोंमें राइ पडिक्कमणेके अंतमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है. सेसंउभयकालमिति महाभाष्यवचनप्रमाण्यात् ॥ तथा श्री अभयदेवसूरिजीने तथा तिनके शिष्यने देवसि पडिक्कमणेकी आदिमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुतदेवता अरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना तथा तिनकी थुइ कहनी कही है ॥ तथा सम्यक्त्व देशविरत्यादिके आरोपणेकी चैत्यवंदनामें प्रवचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy