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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ खमासमणे ॥ भूनिहिअसिरोसयला, इआरेमिच्छा दुक्कडं देइ ॥२॥ सामाइअ पुव्व मिच्छामि, ठाउं काउस्सगमिच्चाइ ॥ सुत्तं भणिअ पलंबिअ, भुअ कुप्पर धरिअ पहिरणओ ॥३॥ घोडगमाई अ दोसेहि, विरहिअंतो करइ उस्सग्गं ॥ नाहिअहोज्जाणुद्धं, चउरंगुलठविअ कडिपट्टो ॥४॥ तच्थय धरेइ हिअए, जहक्कम दिणकएअ अईयारे ॥ पारिउ णमोक्कारेण, पढइ चउवीस थयदंडं ॥५॥ संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्ग विअय बाहुज्झुओ ॥ मुहणं तगंच कायं, पेहेए पंचवीस इह ॥६॥ उठिअठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइ कम्मं ॥ बत्तीसदोसरहिअं, पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥७॥ अह सम्म मवणयंगो, करजुग विहि धरिअ पुत्तिरयहरणो ॥ परिचिंतिअ अइआरें, जहक्कम्मं गुरु पुरोविअडे ॥८॥ अह उववि सित्तु, सुत्तं सामाइअ माइअ पढिअ पयओ ॥ अब्भुट्टिओम्हि इच्चाइ, पढइ दुहओ ठिओ विहिणा ॥९॥ दाऊण वंदणं तो, पणगाइ सुज्झइ सुखामए तिनि ॥ किइ कम्मं किरिआयरिअ, माइ गाहातिगं पढइ ॥१०॥ इअ सामाइअ उस्सग्ग, सुत्त मुच्चरिअ काउस्सग्ग ठिओ ॥ तिइ उज्झोअदुगं, चरित्त अइआर सुद्धिकए ॥११॥ विहिणा पारिअ सम्मत, सुद्धि हेउंच पढइ उज्झोअं ॥ तह सव्वलोअ अरिहंत चेइआराहणुस्सग्गं ॥१२॥ काउं उज्झोअगरं, चिंतिअ पारेइ सुद्धसंमत्तो ॥ पुखरवरदीवड्डे, कठुइ सुअ सोहण निमित्तं ॥१३॥ पुण पण वीसुस्सासं, उस्सगं कुणइ पारए विहिणा ॥ तो सयल कुसल किरिआ, फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥१४॥ अह सुअ समिद्धि हेडं, सुअ देवीए करेइ उस्सग्गं ॥चिंतेइ नमोक्कारं, सुणइ व देईव तीइ थुई ॥१५॥ एवं खित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुइं ॥ पढिऊण पंच मंगल, मुवविसइ पमज्ज संडासे ॥१६॥ पुव्व विहिणेव पेसिअ, पुत्तिं दाऊण वंदणे गुरुणो ॥ इच्छामो अणुसठित्ति, भणिओ जाणुहि तो ठाई ॥१७॥ गुरु थुई गहणे
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