________________
१४०
चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ एकेन श्लोकेन नमस्काररुपेण ॥१॥ जघन्य मध्यमा २ : बहुभिर्नमस्कारैर्मंगलवृत्तापराभिधानैः ॥२॥ जघन्योत्कृष्टा ३ : नमस्कार १ शक्रस्तव २ प्रणिधानैः ।।३।। मध्यम जघन्या ४ : नमस्काराःचैत्यवंदंडक । एकः स्तुतिरेकाश्लोकादिरुपा
इति ॥४॥ मध्यम मध्यमा ५ : नमस्काराश्चैत्यस्तव एकः स्तुति द्वयं एकाधिकृतजिनविषया
एक श्लोकरुपा द्वितीया नामस्तवरुपा यद्वा नमस्काराः
शक्रस्तव चैत्यस्तवौ स्तुतिद्वयं तदेव ॥५॥ मध्यमोत्कृष्टा ६: ईर्यानमस्काराः शक्रस्तवः चैत्यादिदंडक ४ स्तुति ४
शक्रस्तवः द्वितीयशक्रस्तवांताः स्तवप्रणिधानादिर
हिताएकवार वंदनोच्यते ॥६॥ उत्कृष्टा जघन्या ७ : ईर्यानमस्काराः दंडक ५ स्तुतिः । ४ नमोत्थुणं जावंति
जावंत २ स्तवन १ जयवी, ॥१|७|| उत्कृष्टा मध्यम ८ : ई-नमस्काराः शक्रस्तव चैत्यस्तव एवं स्तुति ८
शक्रस्तव जावंति २ स्तव ३ जयवीय ॥४॥८॥ उत्कृष्टोत्कृष्टा ९ः शक्रस्तव ईर्यास्तुति ४ शक्रस्तव स्तुतिः ४ शक्रस्तव १
जावंति २ जावंत, स्तव जयवी, शक्रस्तव ॥९॥ (४६) भाषा ॥ चैत्यवंदनाके जघन्यादि तीन भेद है. यद्भाष्यं ॥ नमुक्कारेण इत्यादि गाथा । इसकी व्याख्या ॥ नमस्कार सो अंजलि बांधि शिर नमावणे रुप लक्षण प्रणाममात्र करके अथवा नमो अरिहंताणं इत्यादि पाठसें अथवा एक दो श्लोकादि रुप नमस्कार पाठ पूर्वक नमस्क्रिया लक्षण रुप करणभूत करके जातिके निर्देशसें बहुत नमस्कार करके करते हुए जघन्याजघन्य चैत्यवंदन पाठ क्रियाकं अल्प होनेसें होती है ॥१॥ अरु दूसरा प्रणाम है सो पंच प्रकारें है शिर नमावे तो एकांग प्रणाम दोनो हाथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org