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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ "अब्भुट्ठिओमि" इत्यादि दंडक पढे. पीछे पांचादि साधु होवें तो तीनकों खामणा करे, और सामान्य साधु होवें तो प्रथम स्थापनाचार्यकों खामणा करके, पीछे तीन साधुकों खमावे, फेर कृति कर्म करे पीछे खडा होके, मस्तके अंजलि करीके आयरिय उवज्जाय इत्यादि गाथा तीन पढके, सामायिक सूत्र कायोत्सर्ग दंडक पढे कायोत्सर्गमें चारित्राचारकी शुद्धिके अर्थं दो लोग्गस्स चिंते, तद पीछे गुरुके पार्यां पीछे पारके, सम्यक्त्व शुद्धिके वास्ते लोगस्स पढे पीछे सव्वलोए अरिहंत चेइआराहण कायोत्सर्ग करे ॥ एक लोगस्स चिंति पारके श्रुतकी शुद्धिके वास्ते "पुक्खरवरदी" कहे, पीछे फेर एक लोगस्सका कायोत्सर्ग करी, सिद्धस्तव पढके, श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करे, एक नमस्कार चिंते उसकों पारके, श्रुतदेवीकी थुइ पढ़ें, वा सुणे ऐसेही खेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करे, तिसमें एक नमस्कार चिंते, वो पारके खेत्रदेवताकी थुइ कहे वा सुणे, पीछे पंच मंगल पढी, संडासा पडिलेही, बैठके मुखवस्त्रिका पडिलेहे, पीछे वांदणा देके, "इच्छामिअणुसठिं" ऐसें कहे के, दो जानु होके, वर्द्धमानाक्षर स्वरसें तीन थुइ पढे. पीछे शक्रस्तव पढे, पीछे स्तोत्र पढे, पीछे आचार्यादि वांदी, प्रायश्चितकी शुद्धि वास्ते चार लोगस्सका कायोत्सर्ग करे, तद पीछे लोगस्स कहे. इति देवसि पडिक्कमणेकी विधि संपूर्ण ॥
___इस विधिमें पडिक्कमणेकी आदिमें चार थुइसें चैत्यवंदन करना कही है. और श्रुतदेवता अरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग अरु इन दोनोकी थुइ कहनी कही है. इस लेखकों सम्यक्त्व धारी मानतें है. और मानते थे, फेर मानेंगेभी परंतु मिथ्यादृष्टितो कभी नही मानेगा इस वास्ते सम्यकदृष्टी जीवकों तीन थुइका कदाग्रह अवश्य छोड देना योग्य है.
(४५) तथा धर्मसंग्रह ग्रंथमें चैत्यवंदनाके भेद कहे है सो पाठ यहां लिखते है ॥ सा च जघन्यादि भेदा त्रिधा यद्भाष्यं नमुक्कारेण
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