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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ निरओ दुक्करतवचरण किसियंगो ॥ १८ ॥ तत्तिव्वतवाकंपियहियया सा देवा भइ सुमुणे ॥ मह कह सुकिंपि कज्जं, जेणं तं लहु पसाहेमि ॥१९॥ मुनिराह अनूचियन्नू, किं मह कज्जं असंजई इ तप | साहमए तुह कज्जं, असंजईइविधुवंहोही ॥ २० ॥ इय भणिओ अणुचियवय, ण सवण उप्पन्नमन्नुविवसमणा ॥ देवीगया सठाणं, मुणिवि अन्नत्थ विहरित्था ॥२१॥ अह तत्थ निवसहाए, थूभकएसेय भिक्खु भिक्खुणं ॥ ज्झाउ महंविवाओ, छम्मासेज्झाव नयत्थिन्नो ॥२२॥ संघेण तओ भणियं, कोच्छितु मलं विवाय मेयंतु ॥ हुं हुं महुरा खमगो, तत्थइ मो त्ति आहूड ||२३|| तेण त वेणा कंपिय, हियया पत्ता कुबेरदत्ताह ॥ किंते करेंमि कज्जं, स भणइ तं कज्जं माहइमा ॥ २४ ॥ किंतुह असंज इए, विइ हिमएनणु पउयण जायं ॥ तो अणुतावा साहू, से मिच्छा दुक्कडं देइ ॥२५॥ सा भाइ खवग पुंगव, सेय पडागाइ दंसणा थूभे ॥ गोसे तहा जइस्सं, जह जिणइ इमे नियय संघो ॥ २६ ॥ इयदेवयाइ वयणं, सोउं खवगो कहेइ संघस्स ॥ संघो वि गंतु साहइ, एवं रन्नो जह नदि ॥२७॥ जइ अह्न एस थ्रुभो, तोइह होही पभाए सियपडागा ॥ अह भिक्खूणं तत्तो, रत्ताइय सुणिय नरनाहो ॥२८॥ तंथूभंरखावइ, समंतउ नियनरेंहिं अहदेवी ॥ पवयणभत्तापड, थूभे गोसेसियपडांग ॥२९॥ तं पि च्छविअछरिय अणच्छ हरिसोनिवो पुरी लोओ ॥ उक्खिट्ट कलयरवं, कुणमाणो भाइ वयणमिणं ॥ ३० ॥ जयउ जए महकालं, एसो जिणनाहदेसिओ धम्मो ॥ जयउ इमो जिणसंघो, जयंतु जिणसासणे भत्ता ॥ ३१ ॥ दट्ठि सुदिट्ठिसुरसुम, र णेणउ तप्पणं पवयणस्स ॥ चिरयरउखवगोपा लिउणचरणगओ सुगई ॥३२॥ मथुराक्षपकचरित्रं, श्रुत्वेत्वौचित्यवचो भव्याः ॥ प्रवचनसमुन्नतिकरी, सुद्दष्टिसुरसं स्मृतिं कुरुत ॥३३॥ इति मथुराक्षपककथा ॥
अथ येऽधिकारा यत्प्रमाणेन भण्यंते ॥ तदसंमोहनार्थं
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