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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ सच्चभावठिई ॥३॥ तथाहि - संपच्चंपकपुष्परागतिरतिर्मत्तांगनापांगति, स्वाम्यं पद्मदलाग्रवारिकणति प्रेमा तडिइंडति ॥ लावण्यं करिकर्णतालति वपुः कल्पान्तवातभ्रम, दीपच्छायति यौवनं गिरिणदीवेगत्यहो देहिनाम् ॥४॥ इय चिंतिउं सविणयं, विणयंधर सुगुरुपास गहियवऊ ॥ गीयत्थो विहरंतो, पत्तो सकयावि महुरपुरिं ॥५॥ तच्छ ठिऊ चउमासं. कुबेरदत्ताइ देवयाइ गिहे ॥ दुत्तव तवचरणरओ, निरउ आयावणविहाणे ॥६॥ विगहा निदाइपमा, य वज्झिओ उज्जुओ सुहज्झाणो ॥ वासी चंदणकप्पो, समोयमाणा वमाणोय ॥७॥ तं ददु हट्टतुट्ठा कुबेरदत्ताह भो मुणिवरिट्ठ ॥ पसियमहकहसु किंते, करेमि मणइच्छियं कज्जं ॥८॥ भणइ मुणीउचियन्नू, भावन्नू दव्वखित्तकालन्नू ॥ मंवंदाव सुभद्दे, सुमेरुसिहरिठिए देवे ॥९॥ देवी भणेइ एवं, करेमि करसंपुडेग हिऊण ॥ नेउं सुमेरु सिहरे, लहुबंधावे सितं देवे ॥१०॥ आह मुणिज्झइ हुज्जिह, थीसंघट्टो वयाइयारकरो ॥ तामस्स वम्मसीले, अलं मज्ज मणो रहेण मिणा ॥११॥ तो सविसेसंतुट्ठा, कुबेरदत्ता तर्हि विणिम्मेइ ॥ गयण यलमणु लिहंतं, सुकिंकिणी जाल कयसोहं ॥१२॥ जिणवर सुपासअप्पडिम, पडिम समलंकियं अइ विसालं उताण नयण प्पण, पिच्छणिज्ज तिय मेहला कलियं ॥१३॥ वरसव्वरयण मइयं, सुमेरु नामं कियं महाथूभं ॥ तं दटुं विहिय मणो, समुणि वंदइ तहिं देवो ॥१४॥ तंथूभरयण मज्जुय, भूयं दट्टण मिच्छदिट्ठीवि ॥ तइयाहरि सुक्करिसा, जायाजिण सासणे भत्ता ॥१५॥ इयंतंमि थूभरयणे, सुपास जिण काल संभवंमि सया ॥ सुर किज्जमाण पिक्खण, खणंमि सुबहू गउ कालो ॥१६॥ इच्छंतरंमि खवगो, सुदंसणो नाम उग्गतवचरणो ॥ विहरइ वसुहावलए, महुराखव गुत्ति सुपसिद्धो ॥१७॥ भवणे कुबेरदत्ता, इसंठिउ सोकयाइ चउमासे ॥ आया वणाइ
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