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________________ ૨પ किसउ सुपुन्नपुरिषु जोइउ ए नयणुलां सफल करउ । निवछणा नेत्रि करेसु अतारिसू ए कपूरि ऊआरणाए । बेडीय बेडीय जोडि बलियऊ ए कीधउं बंधियारो ॥ ३ ॥ लेउ देवाल उमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई आगासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । जलवट नाटकु जोइ नवरंग ए रास लउडारस ए ॥ ४ ॥ निरुपमु होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । तिहां अच्छइ कुमरविहारु रुअडऊ ए रुअडुला जिणभुवण । तीर्थकर तीह देवि वंदिऊ ए सबंभू आदिजिणु । दीठउ वेणिवच्छराजपंदिरु ए मेदनीउरि धरिउ । अपूरवु पेषिउ संघु उत्तारिऊ ए पइल तडि समुदला ए ॥ ५ ॥ द्वादशी भाषाअजाहरवर तीरथिहिं पणमिउ पासजिणिंदो। पूज प्रभाबन तहिं करहिं अजिउ ए अजिउ ए अजिउ सफल सुछंदो ॥१॥ गामागारपुरवोलितो वलिउ सेतुजि संपत्तो । आदिपुरीपाजह चडिऊ ए वंदिऊ ए वंदिऊ ए बंदिऊ ए मरुदेविपतो ॥२॥ भगरि कपूरिहिं चंदणिहि मृगमदि मंडणु कीय । कसमीराकुंकुमरसिहि अंगिहि ए अंगिहि ए अंगो अंगि रचीय । जाइबउलविहसेवत्रिय पूजिसु नाभिमल्हारो। मणुयजनमु फलु पामिऊ ए भरियऊ ए भरियऊ ए भरियक सुकृतभंडारो ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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