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घरि बयसवि करी केवि मन्नाविया । केवि धम्मिय हरसि धम्मिय घाइया । बहुदिसि पाठविय कुंकुमपत्रिया। संघु मिलइ बहु भली य सज्जाइया ॥ २ ॥ सुहगुरुसिधसूरिवासि अहिसिंचउ। संघपति कल्पतरु अमिय जिम सिंचिउ । कुलदेवत सचिया वि भुजि अवतरह । सूहव सेस भरइं तिलकु मंगलु करई ॥ ३ ॥ पोस वदि सातमि दिवसि सुमुहुत्तिहिं ।
आदिजिणु देवाल ए ठविउ सुहचितिहिं । धम्मधोरीय धुरिधवल दुइ जुत्तया । कुंकुम पिंजरि कामधेनुपुत्तया ॥ ४ ॥ इंदु जिम जयरथि चडिउ संचार ए । सूहवसिरि सालिथालु निहाल ए। जा किउ हयवरो वसहु रासिउ हूउ । कहइ महासिधि सकुनु इहु लद्धउ । आगलि मुनिवरसंघु सावयजणा । तिलु न पिरइ तिम मिलिय लोय घणा ॥ ५॥ मादल वंस विणाझुणि वज्जए । गुहिर भेरीयरवि अंबरो गज्जए । नवयपाटणि नवउ रंगु अवतारिउ । सुषिहि देवालउ संखारि संचारिउ ॥ ६ ॥ घरि बयसवि करि केवि समाहिया । समर गुणि रंजिउ विरलउ रहियउ ।
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