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जयतु कान्हु दुइ संघपति चालिया । हरिपालो लंदुको महाधर दृढ थिया ॥ ७ ॥
षष्ठी भाषा
बाजिय संख असंख नादि काहरु दुडुदुडिया | घोडे चडइ सल्लारसार राउत सींगडिया । तर देवालउ जोत्रि वेग घाघरि खु झमकइ । समविसम नवि गणइ कोइ नवि वारिउ थक्कइ ॥ १ ॥ सिजवाला घर घडहडइ वाहिणि बहुवेगि । धरणि धडक्कइ रजु ऊडए नवि सूझइ मागो । हय ह्रींसइ आरसइ करह वेग वहइ बइल | साद किया थाहरइ अवरु नवि देई बुल्ल ॥ २ ॥ निसि दीवी झलहलाई जेम ऊगिउ तारायणु । पावलपारु न पामिय ए वेग वहइ सुखासण | आगेवाणिहि संचरए संघपति साहुदेसल । बुद्धिवं बहुपुंनितु परिकामिहिं सुनिश्चलु || ३ || पाछेवाणि हि सोमसीहु साहु सहजापुतो । सांगणु साहु लूणिगह पू सोमजिनि जुतो । जोडकरी असवारमाहि आपणि समरागरु । चडी हींड चहुगमे जोइ जो संघ असुहरु || ४ | सेरीसे पूजय पासु कलिकालिहिं सकलो | सिरषेजि थाइउ धवलक ए संधु आविउ सयलो । धंधूकउ अतिक्रमिउ ताम लोलियाणइ पहुतो । मि भुवणि उछg करिउ पिपलालीय पत्तो ॥ ५ ॥
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