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________________ ૨૪૩ राणउ रहियउ आपुणपई पाणिहि उपकंठे । टंकिय वाहइ सूत्रहार भांजइ घणगंठे । फलही आणिय समरवीरि ए अति बहुजयणा । समुद्र विरोलिउ वासुगिहि जिम लाधा रयणा ॥ ४ ॥ कूआरसि उछवु हूअउ त्रिसींगमइ नइरे । फलही देषिउ धामियह रंगु माइ न सइरे । अभयदानि आगलउ करुणारसचित्तो । गोति मेलहावइ पइरालुअह आपइ बहुवित्तो ॥ ५ ॥ भांडू आव्या भाउघणउ भवियायण पूजइ । जिम जिम फलही पूजिजए तिम तिम कलि धूजइ । खेला नाचइ नवलपरे घाघरिरवु झमकइ । अचरिउ देषिउ धामियह कह चित्तु न चमकह ॥ ६ ॥ पालीताणइ नयरि संघु फलहीय वधावइ । बालचंद्र मुनि वेगि पवरु कमठाउ करावइ । किं कप्पूरिहि घडीय देह षीरसायर सारिहि ॥ ७ ॥ सामिय मूरति प्रकट थिय कृप करिउ संसारे । मागी दीन्ह वधावणा य मनि हरषु न माए । देसलऊत्रह चरित्रि सहू रलियातु थाए ॥ ८ ॥ पञ्चमी भाषा संघु बहुभत्तिहिं पाटि बयसारिउ । लगनु गणिउ गणधरिहि विचारिउ । पोसहसाल खमासण देयए । सूरि सेयंबरमुनि सवि संमहे ए ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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