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________________ २४२ आपिऊ ए सव्व वयणेहिं फुरमाणु तीरथ माडिवा ए । अहिंदर ए मलिक आएसि दीन्ह ले श्रीमुखि आपण ए । जमत ए पानपसि किउ रलियाइतु घरि संपतो । षणमई जिणहरि राउ समणसंघो तहि विनविउ ए ॥ ४ ॥ संघिहिए कि पसाउ बुद्धि विमासि बहूयपरे । सासण ए वर सिणगारु वस्तपालो तेजपालो मन्त्रे । दरिसण ए छहदातारु जिनधर्मनयण बे निम्मला ए । आइसी ए रायसुरताण तिणि आणीय फलहीय पवर ॥ ५ ॥ दूसम ए तणीय पुणु आण अवसरो कोई नहीं तसु तणउ ए । इह जुग ए नहींय वीसासु मनुमात्रे इय किम छरए । उ हुए पुत्रप्रकासु करि उद्धरि जिणवरधरमु ॥ ६ ॥ चतुर्थ भाषा - संघपति देसलु हरषियउ अति धरमि सचेतो । पणमइ सिधसुरिपयकमलो समरागरसहितो । वीनती अम्हतणी प्रभो अवधारउ एक । तुम्ह पसाह सफल किया अम्हि मनोरहनेक ॥ १ ॥ सेतुजतीरथ ऊरिवा ऊपन्नउ भावो । एकु तपोधनु आपणउ तुम्हि दियउ सहाउ । मदनु पंडित आइसु लहवि आरासणि पहुच | सुगुरवयणु मनमाहि घरिङ गाढउ अति रूचई ॥ २ ॥ रारा तहि राजु करइ महिपाल देउ राणउ | जीवदय जाग जाणिजए जो वीरु सपराणउ | पातउ नामिहि मंत्रिवरो तसुतणइ सुरजे । चन्द्र कन्हइ चकोरु जिसउ सारइ बहुकज्जे || ३ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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