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________________ ૨૦૫ करिन तं वच्छ जं तुज्झ मण भावए अच्छए गदगदसरि भनंती ॥२०॥ घात - अन्न वासरि अन्न वासरि तंमि नयरंमि । जिण कुसल मुर्णिदवरो महियलंनि विहरंतु पत्तउ | तहि वंदइ भत्तिमरि रूदपालु परिवारजुतउ | गुरु पक्व समरिगु कुमरो आनंदिउ नियचित्ति । भइ अम्ह दिक्खाकुमरि परिणावउ सुमुहति ॥ २१ ॥ तं च सुवयणु तं च सुवयणु धरवि नियचिति । निय मंदिर आवियउ रूदपाल सयणिहि विमासइ । तं जाणवि कुमरवरो आगहेण नियजणणि भासइ । मूं परिणावि न दिक्खसिरि माइ भइ वरनारि । कुमर भइ विणु दिक्खसिरि अवर न मनहं मझारि ॥ २२ ॥ भास - अह जाणविणु समरिंग निच्छउ । कारावइ वय सामहणी तउ । मेलिय साजण चालइ नियपुरे । धवलधुरंधर जोत्रिय रहवर ॥ २३ ॥ चालु चालु इलि सहि वेगिहिं सामहि । धारलनंदणवर परिणय महि | इम पभणतीय सुल लिय सुंदरि । गायई महुरसरिगीय हरिसभरि ॥ २४ ॥ क्रमि क्रमि जान पहूतीय सुहादणि । भीमपलीपुरे गुर हरसिउ मणि । अह सिरिवीर जिनिंदह मंदिरि । मंडिय वहलि नंदि सुवासरि ॥ २१ ॥ तरलतुरंगमि चडियउ लाडणु | मागणवंछिय दाणु दियइ घणु । कील्हूय अणवरिसउं समरिंग वर । जिम सरसई किरि कालिंगकुमर ॥ २६ ॥ आविउ जिणहरि वरु मणहरवउ । दीखकुमारीय सउं हथ लेवउ । जिणकुसल सुरि गुरो आपुर्णि जोसिउ | होमई झाणानलि अविरइ घिउ ||२७|| वाजइ मंगलत्तूर गुहिरसरि । दियई धवल वरनारि विविधपरि । इण परि तेर बियासिय वच्छरि । समरिगु लाडणु परिणइ वयसिरि ॥ २८ ॥ घात - तयणु चलवितयणु चलवि भीमवरपल्लि | सामहणी जानसउं रूदपाल आविउ सुवित्थरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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