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तसु मंदिरि धारलउयरे उपन्नउ सुकुमारु । सपर नामि सो समर जिम वद्धइ रूपि अपारु ॥ ८॥ मह अवर वासरे पल्हणेपुरवरे भवियजणकमलवणबोहयंतो । पत्तु सिरिजिणकुसलसूरि सूरोवमो महियले मोहतिमरं हरतो ॥ ९ ॥ वंदए भत्तिरंगेण उत्कंठिउ रूदपालो परीवार जुत्तो। धम्मउवएसदाणेण आणंदए सादरं सूरिराउ विनतो ॥ १० ॥ अह सयललक्खणं जाणि सुवियक्खणं सूरि दट्टण समरं कुमारं । भणय तुह नंदणो नयणआणंदणो परिणओ अम्ह दिक्खाकुमारिं ॥११॥ इय भणिय पत्तु गुरु भीमपल्लीपुरे तं वयणु रयण जिम रूदपालो। धरिवि नियचित्ति सयणिहिं आलोचए तं सुरूवं सुणय सोजि बालो ॥१२॥ तयणु नियजणणि उच्छांग निवडेवि मंडए राहडी विविहपरि । भणह जिणकुसलसूरि पासि जा अच्छए माइ परिणाविसू सा कुमारि ॥१४॥ भाइ भणइ निसुणि वच्छ भोलिमधणी तउं नवि जाणए तासु सार । रूपि न रीजए मोहि न भीजए दोहिली जालवीजइ अपार ॥ १४ ॥ लोभि न राचए मयणि न माचए काचए वित्ति सा परिहरए । अवरनारी अवलोयणि रूसए आपण पइं सर्यि सत वरए ॥ १५ ॥ इसिय अनेरीय वात विपरीत तासु तणी छई घणी सच्छ । सरल सभाव सलूणडा बाल कुण परि रंजिसि कहि न वच्छ ॥ १६ ॥ तेण कलकमलदलकोमलहाथ बाथ म बाउलि देसितउं । रूपि अनोपम उत्तमवंस परिणाविसु वर नारि हउं ॥ १७ ॥ नव नव भंगिहिं पंच पयार भोगवि भोग वल्लह कुमार । ऋमि ऋमि अम्ह कुलि कलसु चडावि होजि संघाहिवइ कित्तिसार॥१८॥ इय जणणिवयण सो कुमरु निमुणेवि कंठिआलिंगिउं भणइ माइ । जा सुहगुरि कही साजि मूं मनि रही अवर भलेरीय न सुहाइ ॥ १९ ॥ तउ कुमर निच्छयं जणणि जाणेवि ढणहण नयणि नीरं झरंती ।
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