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________________ ૨૨૬ जिणवइसूरिण मुणिपवरो देसण अमियरसेण । कारिय जीमणवार तहि जानह हरिसभरेण ॥ २१ ॥ संतिजिणेसरवरभुयणि मंडिय नंदि सुवेहि । वरसहि भविया दाण जलि जिम गयणंगणि मेह ॥ २२ ॥ तहि अगियारीय निपजए झाणा नल पजलति । तउ संवेगिहि निम्मिय उहघ लेवउ सुमुहुत्ति ॥ २३ ॥ इणि परि अंबड बरकुमरो परिणइ संजमनारि । वाजई नंदीय तूर घणा गूडिय घरघर बारि ॥ २४ ॥ कुमरु चल्लिउ कुमरु चल्लिउ गरुयविछड्डि । परिणवा दिक्खसिरी पेडनयारे षेमेण पत्तउ | I सिरि जिणवइ जुगपवरो दिहु तत्थ नियमणिहि तुट्टउ । परिणइ संजमसिरी कुमर वज्जहि नंदिय तूर । नेमिचंद अनु लषमिणि हि सव्चि मणोरह पूर ।। २५ ।। वीरपहु तसु ठवियउ नामु जणश्रवण अमियरसु किरि झरंतो । अह सयलनाण संमुद्द अवगाहए वीरप्रभुगणि गुरुपसाए ॥ २६ ॥ क्रमि क्रमि जिणवइसूरिहि पाटुऊ धरिउ किरि गोयमगणिंदो ||२७|| अज्जसुहत्थि जिम जिणभुवण मंडियं महियलं निम्मियं अरिरि जेहिं सिरिवयरसामि जिम तित्थउन्नइ कया कटरि अच्छरिय सुचरिय पहूणं ॥ २८ ॥ जेण जिणवर जेणजिणवर भुवणउत्तुंग । किरि भवियण ववहारियह पुन हट्ट संठविय पुरि पुरि । जणु दुग्गइउ दूरिउ धम्मरयणदाणेण बहु परि । नाण चरण दंसण जुवइ केलिविलासपहाणु । साहु उ सो बंनियइ जिणेसर सुरि जागे भाणु ॥ २९ ॥ सिरिजाबालिपुरम ठिएहिं जेहि निय अंतसमयं मुयं मुणेवि । निययपट्टामे सई हत्थि संठाविओ वाणारिउ प्रबोधमूर्त्तिगणि ॥ ३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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