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सिरिजिणप्रबोधसूरि दिन्नु तसु नामु तउ भणिउ सयलसंघस्स अग्गे। अम्ह जिम एहु मानेवओ संघि जुगपवरु जिणप्रबोधसूरिगुरु ॥३१॥ अणसणु लेवि सुहझाणु घरेवि अरिरि सुहडत्तु इम भाणिऊणं । जिणेसरसूरि सग्गमि संपत्तओ पूरओ संघमणवंछियाइं ॥ ३२ ॥ एह वीवाहुलउ जे पढहिं जे दियहि षेलाषेलिय रंगभरि । ताह जिणेसरसूरि सुपसन्नु इम भणइ भविय गणि सोममुत्ती ॥३३॥
। इति श्रीजिनेश्वरसूरि दीक्षावीवाहवर्णनारासः समाप्तः ।
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