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________________ स्वप्ने मानवमृगपतितुरङ्गमातङ्गवृषभसिंहैः । युक्तं रथमारूढो यो गच्छति भूपतिः स भवेत् ॥ -- कल्पसूत्र सुबोधिका में उद्धृत श्लोक १६४. भगवती सूत्र की टीका ( शतक १६ उ. ६ सू. ५८१ ) में ४७ स्वप्न ( सामान्य फल वाले) गिनाये गये हैं । १४ महास्वप्न तीर्थंकर की माता देखती है और १० स्वप्न भगवान महावीर ने छद्द्मस्थ काल में शूलपाणियक्ष के मन्दिर में देखे : - इस प्रकार ७१ स्वप्न होते हैं । तीर्थंकर की माता विमान अथवा भवन देखती है एक और बढ़ जाने से ७२ स्वप्न गिनाये गए हैं। भगवती टीका में ४७ स्वप्न निम्न प्रकार हूँ १ हय पंक्ति -- २ गज पंक्ति ३ नर पंक्ति ४ किन्नर पंक्ति ५ किंपुरुष पंक्ति ६ महोरग पंक्ति ७ गंधर्व पंक्ति ८ वृषभ पंक्ति ९ दामिनी १३ लोहित सूत्र १४ हरिद्रसूत १५ शुक्लसूत १६ अयराशि १७ तम्बराशि १८ तउयराशि १६ सीसगराशि २० हिरण्यराशि २१ सुवर्णराशि २२ रत्नराशि २५ कट्ठराशि २६ पत्रराशि Jain Education International २७ तपाराशि २८ भुसराशि २९ सराशि ३० गोमयराशि ३१ अवकरराशि १६६. तिहि नाणेहि सम्मग्गो, देवितिसलाए सो य कुच्छिसि । अह वसह सन्निगभो, छम्मासे अद्धमासं च । अह सत्तमम्मि माहे गब्भत्थो चेवऽभिग्गहं गेहे । नाहं समणो होहं, अम्मापियरंमि जीवंते । ३२ शरस्तम्भ ३३ वीरिणस्तम्भ १० रज्जु ३४ वंशी मूलस्तम्भ ११ कृष्ण सूत्र २३ वज्रराशि ३५ वलभीमूलस्तम्भ ३६ क्षीरकुंभ १२ नील सूत्र २४ तृणराशि १६५. प्रीतिदान का भावात्मक अर्थ है -- दाता प्रसन्न होकर इच्छा अपनी से जो दान देता है । जिस दान में अर्थी की ओर से याचना किंवा प्रस्ताव रखा जाता है और उस पर मन नहीं होते हुए भी दाता को देना पड़ता है वह प्रीतिदान नहीं है । प्रीतिदान का व्यावहारिक अर्थ है - इनाम या पुरस्कार, पारितोषिक । ३७ दधिकुम्भ ३८ घृतकुम्भ २३ ३६ मधुकुम्भ ४० सुरावियडकुंभ ४१ सोवीरवियडकुंभ ४२ तेलयकुंभ ४३ वसाकुंभ ४४ पद्म सरोवर For Private & Personal Use Only ४५ सागर ४५ भवन ४७ विमान -- देखिये, अर्धमागधी कोष ३।५८९ १६७. वर्षासु लवणमृतं शरदि जलं गोपयश्च हेमन्ते । शिशिरे चामलकरसो, धृतं वसन्ते गुडश्चान्ते ॥ वातलैश्च भवेद् गर्भः कुब्जान्धजडवामनः । -- कल्पार्थ बोधिनी टीका में उदृधूत - पृ. ८४|१ पित्तलै: खलतिः पिङ्गः, श्वित्री पाण्डुः कफात्मभिः । -- वाग्भट्ट, अष्टांग हृदय, शारीर स्थान ११४८ - आवश्यक भाष्य, गा. ५८-५९ www.jainelibrary.org
SR No.004908
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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