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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ४४ केटलाक प्राचीन वैयाकरणोए “प्रकृतिः संस्कृतम्-तत्र भवम् 'प्रकृतिः संस्कृतम्' ।
., तत आगतम् वा प्राकृतम् ” एम कहीने प्राकृत वाक्यना अर्थनी भाषानी जननी तरीके संस्कृतने मूकी छे. संगतता अने 'प्राकृत' शब्दनो तेओए बतावेलो उक्त अर्थ
असंगतता करीते संगत थई शके अने बीजी अपेक्षाए संगत न थई शके एवो छे.
प्राकृतना मूळरूपे बतावेला 'संस्कृत' शब्दनो अर्थ 'वेदोनी जीवती संस्कृत' एवो करवामां आवे तो 'प्रकृतिः संस्कृतम्' व्युत्पत्ति संगत थाय खरी. परंतु 'प्रकृतिः संस्कृतम्' ना 'संस्कृत' पदनो 'पाणिनि वगैरे वैयाकरणोए जेनुं बंधारण घड्युं छे एवी परिमार्जित संस्कृत' एवो अर्थ तेमणे विवक्षित को होय तो भाषातत्त्वना विकासनी दृष्टिए तद्दन असंगत
४५ आ विशे विशेष मनन करतां मने एम लागे छे के ज्यारे ते ते प्राकतने प्राकृत व्याकरणोनी रचना थई त्यारे भणेलागणेला समझाववा वर्गमां अत्यारे जेम अंग्रेजीनुं छे तेम संस्कृत भाषानुं संस्कृत वाहनरूप प्राबल्य हतुं अने लोकोमा प्राकृत ज चालु हतुं.
छ लोकोमा बोलातुं जीवन्त प्राकृत अने साहित्यिक प्राकृत ए बे वच्चे वर्तमानमां भणेलागणेलाओनी भाषा अने गामडियानी भाषा वच्चे जेवं अन्तर वर्ते छे तेवं अंतर प्रवर्तमान हतुं. एवे समये प्राकृतभाषाना शब्दोनी व्युत्पत्तिने समझवा सारु तुलनात्मक दृष्टिए प्राकृत व्याकरणनी घटनामां वाहन तरीके परिमार्जित संस्कृत भाषानो उपयोग को होय अने ते बताववा ते ते वैयाकरणोए 'प्रकृतिः संस्कृतम्' लख्यु होय तो ए बनवाजोग छे अने संगत पण छे.
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