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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति [५० ] व्यापक प्राकृतमा जे जे विधानो अकारान्त नामोने
अकारांत अने माटे कों होय छे ते विधानो अकारान्त सिवायनां अकारांत सिवायनां नामोने पण लागु पडे छे. आवी व्यवस्था वैदिक समान विधान प्रक्रियामां सचवायेली छे.
व्यापक प्राकृतमां अकारान्त नामोने माटे त्रीजीना बहुवचनमां 'हि' प्रत्ययनुं विधान छे. ते 'हि' प्रत्यय अकारान्त नामो सिवायनां नामोने पण लागे छे. ए ज रीते अकारान्त नामोने माटे विहित थयेलो त्रीजीना बहुवचननो ‘ऐस्' प्रत्यय वैदिक प्रक्रियामां ईकारान्त नामोने पण लागे छे. जेमके-" नद्यैः” [७-१-१० पाणि० काशिका ] [५१] व्यापक प्राकृतमा 'कुह' अव्यय 'क्यां' अर्थमां अने
. नं' अव्यय उपमा अर्थमां वपराय छे. वेदनी 'कुह' अने 'न'नो
" भाषामां पण 'कुह' [ऋ० वे० पृ० ७३३ म०
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सं०, निरुक्त पृ० २२०] 'क्यां' अर्थमां अने 'न' उपमा अर्थमां आवे छे [ऋ० वे० पृ० ४६०-४६२-५२८-म० सं०]
उक्त प्रकारे जणावेलां अनेक उदाहरणो द्वारा एम सिद्ध करी शकाय एवं छे के व्यापक प्राकृतना प्रवाहनो सीधो संबंध वेदोनी जीवती मूळ भाषा साथे ज छे. नहीं के जेनुं स्वरूप पाणिनि प्रभृति वैयाकरणोए निश्चित कर्यु छे एवी लौकिक संस्कृत साथे. ४२ उपर्युक्त मत सिद्धरूप छे छतां जे कोई व्यापक प्राकृतनो
सीधो संबंध लौकिक संस्कृत साथे साधवा प्रयत्न व्यापक प्राकृतमा करे तेने एम पूछवं जोईए के उक्त वैदिक उदाहजीवती वैदिक
रणोमां जणावेला ते ते प्रयोगो लौकिक संस्कृतमां भाषानुं प्रतिबिंब
मुद्दल नथी अने व्यापक प्राकृतमां तेनुं प्रतिबिम्ब
प्रयोग
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