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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति हता, लाखो करोडोनी संख्यामां हता-ए बन्ने प्रकारना प्रयोगोनो संग्रह कर्या पछी तेमनुं तुलनात्मक परीक्षण थाय, मूळरूपनी समझ पडे, विकृतरूपनी ओळख थाय अने आq चोक्कस तारण कर्या पछी ज मूळ प्रयोगोनो निर्णय थाय, आ रीते विशाल संशोधन- कार्य चाल्या पछी ज आर्योनी भाषाना बंधारणतुं घडतर करी शकाय; परंतु आबु दीर्घकालापेक्ष अने महाप्रयाससाध्य आयोजन थतां पहेलां तो ते मूळभाषा अनेक परिणामान्तरो पामी चूकी हती.
वेदोमां सुद्धा अनार्य शब्दो पेसी गया हता अने बोलचालना प्रवाहमां पडेली ते मूळभाषानो नमूनो मात्र वेदोनी ऋचाओमां जळवायो हतो अने ते पण सर्वथा अविकृत तो न होतो ज अने बीजी तरफ सर्वजनसाधारण भाषानो प्रवाह प्रभावशाली बनतो जतो हतो. आवी स्थितिमां परंपरा, तुलनात्मक परीक्षण वगैरे कसोटीनो आश्रय लईने ते परिवर्तित भाषाना खोखामां ज प्राण पूरी इन्द्रादि वैयाकरणोए मूळभाषानुं बंधारण घड्यु अने मूळभाषाने सजीवन करवानी पोतानी धारणा पूरी करी.
तेमणे करेलु ए बंधारण ते ज लौकिक संस्कृतना देहनी घटना. वर्तमानमा इन्द्रे करेलु ऐन्द्र व्याकरण तो उपलब्ध नथी परंतु तेमना प्रतिनिधिरूप पाणिनिऋषिए रचेलं व्याकरण उपलब्ध छे. ३७ लौकिक संस्कृतनो अर्थ एवो नथी के ते क्यारे य समग्रलोक
. व्यापक संस्कृत हतुं परंतु वैदिक संस्कृत करतां लौकिक संस्कृत सीता कोई अपेक्षाए जटा प्रक
त तेनी घटना कोई अपेक्षाए जुदा प्रकारनी हती. समग्रलोकव्यापक टिक संस्कतथी तेनो पृथग्भाव बताववा सारु न हतुं
इन्द्र, पाणिनि वगैरे ऋषिओए घडेली भाषाने लौकिक संस्कृत नाम अपायुं छे, ए ध्यानमा रहे.
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