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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति जमारओ, आलिमात्रि कांइ हारउ । ए जि सम्यक्त्वमूल बारह व्रत पालियहि xxx आशातना टालियहिं । पूजिय श्रीआदिनाथ देवता, पापु नासिइ शत्रुजय सेवता। ___ अनी किसउ घणउं भणियइ माहरी माइ, एहु देसु गुजराति छाडी करि अनइ अनेरइ देशि किसी परि मनु जाइ । जिणि देशि मादल तणा धोंकार, तिविल तणा दोंकार, वंश तणा पौंकार, नृत्य तणा समाचार, ताल तालकार, आवजी–पखावजी–पटावजी-खंधावजी-भूगलिया-करडिझलरि-पडह–समेतु पंच सबदु वाइयइ । गूजरी गीतु गाइयइ । लास्यु तांडवु नाचियइ । मृदंगु वाइयइ ।”
(२)" जब मालवा देश की वावली बोलण लागी, तब अवर देश की परिभागी । दिक्खु रे मोरी बहिणी फुणि फुणि मोरा देसु काहउ वक्खाणहि । मोरा देश की बात न जाणहि । जिणि देशि मंडवगढ केरा ठाउ, जयसिंघ देव राउ । मसूर का थान, अवर देश का काहउ मान । काटा सूतु अरु तुट्टणा, कोरा साडा अरु भूणा । ठाली अरु वाजणी पेटिली अरु नाचणी, दिक्खु रे मोरी बहिणी। बलि बलि काहउ बिललाइ, तोरा बोल्या सहु वाइयइ । मालव देश की परिनीकी सिरि की टीकी । सेत चीर का साडा । पूजियइ आदिनाथ युगराज"।
(३) “ अथ पूर्वी नायिका का बोल्या सुणहुगे रे भइया । इथु जुगी जाणिवउ धीरे, दिखु रे मोरी बहिनी फुनि फुनि मोर देसु कितबु खर ति आहि। मोरे देस की बात न जानसि, जेहि देस ऐसे मानुस कैसे—इक्कु धीरे वीरे विवेकिए। पर मदापके मोडन मराट मल्ल, तुम्ह कतुके जान, कतुके परान, ववा की आन। अम्हां तुम्हां बडा अंतरु आहि। कइसु अंतरु, तुम्ह के मानुस तरि मोटे, ऊपरि मोटे विचि छोटे। अत अम्ह के मानुस
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