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उपसंहार
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जब सोऊं तब जागवइ जब जागू तब जाइ ।
मारू ढोलउ संभरइ इणि परी रयण विहाइ ॥ ७६ ॥ आ भाषा पण आपणी तेरमा-चौदमा शतकनी गुजरातीनी जेवी छे. फेर घणो ज ओछो छे. __आ संबंधे विशेष जिज्ञासावाळा अभ्यासीए दोहाकोश (कलकत्ता संस्कृतसिरिझ), डाकार्णवतंत्र (कलकत्ता संस्कृतसिरिझ), ढोलामारूरा दूहा (काशी-नागरीप्रचारिणी सभा), ज्ञानेश्वरीगीता (राजवाडेनुं संपादन) वगेरे प्राचीन लोकभाषाना ग्रंथोनी भाषानुं गंभीरपणे अवलोकन करवू आवश्यक छे.
२२६ आ बाबत नीचेनां अवतरणो वांचवाथी विशेष स्पष्ट थाय एम छे. ए अवतरणो नागरीप्रचारिणी पत्रिका ( काशी वर्ष ४६ अंक ३ नवीनसंस्करण कार्तिक १९९८ संग्रा० नाहटाजी) माथी लीधेलां छे. अवतरणो बधा गद्य छे अने चौदमी सदीनां छे. अवतरणोमां कशो फेरफार न करता तेमने यथामुद्रित अहीं ऊतारेलां छे. अवतरणोमां मुद्रणनी अशुद्धि जणाय छे खरी; परंतु मूळ आधार विना तेने वगर सुधार्ये ज चलावी लेवी पडी छे. चार अवतरणोमां बीजं, मालवानी भाषानुं द्योतक छे. त्रीजु पूर्व देशनी भाषानुं सूचक छे. चोधुं महाराष्ट्री वाणीनुं निदर्शक छे अने पहेला अवतरणनी भाषानुं विशेष नाम अवतरणमां कळातुं नथी तेम छतां ए पहेलं, सरखामणीनी दृष्टिए जोतां प्राचीन गुजरातीनुं जणाय छे.
योजके आ चारे अवतरणो जुदा जुदा चार देशनी चार नायकाना मुखमां मूकेलां छ :
(१) “ अहे बाई एहु तुम्हारा देसु कवण लेखा माहि गणियइ । किसउ देसु गुजरातु, सांभलि माहरी वात । एउ जु लाधउ माणुसओ
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