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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति २१२ तेरमा सैकानी त्रण कृतिओ पैकी पहेलीमां जीव, मन अने इंद्रियोनो संवाद छे. एमां इन्द्रियोना विषयो-स्पर्श, रस, रूप, गंध अने शब्दोना मोहक सामर्थ्यवें वर्णन छे अने अंते इन्द्रियनिग्रहरूप संयमनी भलामण करेली छे. त्यार पछी स्थूलिभद्र, वररुचि, नंद अने मन्त्री शकटालनी संक्षिप्त कथा छे, तथा वेश्याने त्यां जईने परमहंसवृत्तिथी रहेनार स्थूलिभद्रना चारित्रनो प्रकर्ष गवायेलो छे.
बीजी कृतिमां जंबूस्वामिनु चरित्र छे. जम्बूकुमार एक वैश्यपुत्र छे, संपन्न छ, यौवनवंत छे. तेणे साक्षात भगवान महावीरनी वाणी सांभळी, तेथी आत्मराज्यनो नाश करनारा काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर, मान अने माया वगेरेनुं जेमां प्राबल्य छे एवी दैहिक विलासनी प्रवृत्तिने तजी देवानो निश्चय कर्यो. आम छतां मातानो भक्त ते जंबू मात्र माताना ज आग्रहथी आठ कन्याओने परण्यो. परणतां पहेलां तेणे पोतानो निश्चय ते ते कन्याओना वाली
ओने जणाव्यो. वालीओए ए बात कन्याओने जणावी अने तेमने बीजे परणवानी सूचना करी छतां कन्याओए जंबूने ज परणवानो आग्रह राख्यो, जंबू परण्यो. रात्रे घेर आव्यो. घरमां ऋद्धि अढळक छे. लग्ननी धमालनो लाग जोई प्रभव नामनो चोर पोताना साथीदार खातरियाओ साथे जंबूना घरमां चोरी माटे पेठो. कोई विद्याना बळे तेने घारण मूकी, घरनां बधांने तेणे सूवाडी दीधां अने ताळां ऊघाडवानी कळावडे पेटीओनां ताळां खोली नाख्यां. मात्र एक जंबू ऊपर तेना घारणनी असर न थई एटलुं ज नहीं पण ते चोरो ऊपर जंबूनी दृष्टि पडतां ज ते बधा थंभी गया-आम के तेम एक पगलं पण न चाली शके एवा स्तब्ध थईने ऊभा रह्या. जंबू ते चोरोने कशुं य हनकन केतो नथी. तेम तेणे तेमने थंभाव्या पण नथी. ते तो पोते सवारना प्रथम प्रहरमां भगवान महावीरना
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