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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति संस्कृत आव्यानो मत केवी रीते अप्रमाण छे ते पण वीगतथी दर्शावेलु छे अने हेमचंद्रे कहेला "प्रकृतिः संस्कृतम्" वचननी संगति अने असंगति बन्ने युक्तिपूर्वक दर्शावेलां छे अने संस्कृत ऊपर प्राकृतनी असर तथा प्राकृत ऊपर संस्कृतनी असर ए बन्ने हकीकत पण विशेष उदाहरणो साथे बतावेली छे. साथे प्राकृतभाषानी अवहेलना करवाथी आपणे जे काई खोयुं छे ते दर्शावी हवे एवी अवहेलनानो त्याग करवा विशेष नम्रतापूर्वक साक्षरसमस्तने विनंती करेली छे. पछी तो प्राकृत भाषाओ-पालि, अशोकनी धर्मलिपिनी भाषा, खारवेलनी धर्मलिपिनी भाषा, आर्षप्राकृत, अर्धमागधी, सामान्य प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, अपभ्रंश वगैरे भाषाओनो संक्षेपमा परिचय आपेलो छे. जैन परंपराना दिगंबर संप्रदायना प्रवचनसार वगैरे ग्रंथोनी भाषानुं पण स्वरूप साथे साथे दर्शावेलुं छे अने 'अपभ्रंशनो समय तथा ते विशेनां प्रमाणो' ए बाबत थोडा विस्तारथी चर्चेली छे अने एम सिद्ध कर्यु छे के अपभ्रंश साहित्यने पांचमा सैकाथी आरंभी शकाय. ललितविस्तरमहापुराण, भरतनुं नाट्यशास्त्र वगेरेना संवादोथी अपभ्रंशनो समय चर्यों छे. आनी पछी हेमचंद्रे रचेलु अपभ्रंशनुं के ऊगती गुजरातीनुं व्याकरण साररूपे गोठवेलुं छे अने हेमचंद्ररचित पद्योद्वारा ए साबीत करी बताव्युं छे के हेमचंद्रे जे ए व्याकरण रचेलुं छे ते तेमनी मातृभाषानुं एटले के गुजरातीनुं छे. ए गुजराती अद्यतन गुजराती नहीं पण तेमना समयनी गुजराती एटले ऊगती गुजराती के प्राचीन गुजराती अथवा जेने केटलाक विद्वानो अंतिम अपभ्रंश कहे छे, ते छे. साथे ए पण जणावेलुं छे के तळपदी भाषाओनुं के लोकप्रचलित भाषा
ओनुं मूळ वेदवाराना आदिम अपभ्रंशमां छे अने प्राकृत वा संस्कृत भाषा तो तळपदी भाषाओनी मोटी अने नानी माशी जेवी छे. आदिम अपभ्रंश, प्राकृत अने संस्कृत एक प्रवाहमांथी आवेली होईने बहेन जेवी छे. देश्य
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