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अढारमा सैकानुं पद्य तथा गद्य
सुंदर धाम स्वरूपी शुकजी स्वेच्छा गमन करंता । वेष विशद अवधूत तणो लै महितल मांह्य फरंता ॥ ५७ ॥
झलहल तेजलता सम जेहूनी जटा यत्न विन वाधे । कण्ठ विशे उपवीत अचल त्यहां माला मोहिनी साधे ॥ ५८ ॥
जेहूनूं चिन्ह जणाय नहीं जे कोण वर्ण आश्रम्म । यथालाभ संतोषी शुकजी पूरणरूपी परम ॥ ५९ ॥ माना बालक कौतुक जोवा केडे फरता क्रोड | कर्दम ने तृण तनुये वलगां अलगां बंधन छोड ॥ ६० ॥ सोल वरसना शुकजी त्यहिये कोमल चरण सुगात्र । कर उर स्कन्ध कपोल सुकोमल सुंदर शोभापात्र ॥ ६१ ॥ दर्शनीय ने दीरघलोचन उत्तम नासाकीर ।
तुल्यकर्ण भ्रुकुटी मुख सुंदर कम्बुकण्ठ सुशरीर ॥ ६२ ॥ कंठ थकी हेठेरां दीसे युग्म हाड व्हां जेह | ते जेहूनां मांसे करी ढांक्यां नव्य दीसंतां तेह ॥ ६३ ॥ जेहूनूं वक्ष विशाल ने वली वर्तुल नाभिकूप । ऊंडेरी त्रिवल्लीनी रेखा उदर अनूप सुरूप ॥ ६४ ॥ नग्न दिगंबर वांका वलता अलकजटा भगवान । नारायण सरखो दीसंतो जेहना भुज आजानु ॥ ६५ ॥ श्याम शरीरे सदा काल जे यौवनवननी ज्योत्य । अंगतणी त्यहां उत्तम शोभा स्त्रीजनमन उद्योत ॥ ६६ ॥ हरखे हास्य करंता आवे निरखी सुंदर शोभा । शुकने देखी आसनथी सहू थया मुनिजन ऊभा ॥ ६७ ॥
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