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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति वसे सेंहेर तलेटी तास चांपानेर नामें शुवीलास । गढ मढ मंदर पोल प्रकास सप्त भुमीयां उत्तम आवास ॥ ३॥ वरण अढार त्या सुषि वसे सोभा देषि मन सुलसें । वेंपारीनी नही रे मणा सातसें हाट सरइयां तणां ॥ ४॥ नित्य चोकडीयां कोडी करे वेसानां मंदर वीससे ।
पातसाह तिहां परगडो राज्य करे मेंम्मद्द वेगडो । सतरसेंस गुंजरनो धणि जिणें भुजबलें कीधी पोहवि घणि ॥६॥ सवालष हेमर सोभता दस सहेसनां गज दीपता । सीतेर षांन बहोतेर ओमराओ अवर घणां छे रांणा राओ ॥७॥ नगर सेठ मेंतो चांपसी अहनिस धर्म तणि मति वसी । सेठ साथे माजन सोहाइं एक दीवस दरबारे जाई ॥८॥ मारगं मलिओ दिधु मांन ओमराओ सालोदुषांन । षांन साथै आवता सेठ बंब भाट तव दीठो दृष्ट ॥९॥ ___ x x x x x इंम करतां दिन केता वोल्या वरस थयुं छे मार्छ । मेह न कुंठा मेहदनिमें वरस निपर्नु काटुं ॥ ३० ॥ पडीओ दकाल के परजा पीडे को केइने नव्य आपें । आप आपणे मापें षातां धाने कीमें न धापे ॥ ३१॥ मात पीता बंधव ने बेटा भाई ने भोजाई।। नात्य जात्य गोत्रीजन जुठां एक अन्न साथें सगाई ॥ ३२ ॥ अन वीना देवांन न दीपे बुध्य शुध्य सवी जाई । कीडी कुंजर माषि पंषि अन सहु को षाय ॥ ३३ ॥
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